कविता- नारी एक बेचारी

 🌷 कविता 🌷

     🌷नारी एक बेचारी 🌷

नारी एक बेचारी 

     जीवन भर लाचारी ।

ना जीती ना हारी 

     नारी एक बेचारी ।।


कहने को नर की खान है 

       लक्ष्मी जैसा मान हैं।

नर पर है बलिहारी ।

    नारी एक बेचारी ।।


धरती से अंबर तक दौड़े 

      नर के कंधे से कंधा जोड़े।

फिर भी नारी की नारी ।

     नारी एक बेचारी ।।


कहते है शक्ति स्वरूप 

    सदा रही संयम से चुप ।

लोक लाज सब धारी ।

      नारी एक बेचारी ।।


नर ने दी है कई यातना 

     करे कभी ना कोई याचना ।

फिर भी नर पर वारी ।

      नारी एक बेचारी ।।


युग बदले अस्तित्व न बदला 

     ,सदा रही अबला की अबला ।

पुरूष प्रधान युग की मारी ।

     नारी एक बेचारी ।।


नारी ने रचे कीर्तिमान हैं 

    फिर भी ना कोई गुमान हैं।

समाज पर उपकारी। 

      नारी एक बेचारी ।।


नारी से ही नर है उपजा 

    नारी ही करती नर की पूजा ।

एक दूजे के पूरक नर नारी ।

        नारी एक बेचारी ।।


जो नारी का दर्द न जाने 

    जो दौलत को लक्ष्मी माने ।

गृह लक्ष्मी धिक्कारी ।

     नारी एक बेचारी ।।

कवि हरे राम चौरे  विकट



आदि से आधुनिकता तक 

      वर से उस विधाता तक ।

सृष्टि में भागीदारी ।

      नारी एक बेचारी ।।


हरेराम चौरे विकट 🌷🙏🌷

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