मैं श्रमिक हूँ श्रम करता हूँ

 

मैं श्रमिक हूँ श्रम करता हूँ 

हरेराम चौरे  विकट


मैं श्रमिक हूँ श्रम करता हूँ ।

श्रम करके उदर भरता हूँ ।।

 

     बोझ से बोझिल नही होता ।

     श्रम से विचलित नही होता ।।


श्रम मेरी दिनचर्या है ।

मेहनत ही मेरी भार्या है ।।


    ठंडी, गर्मी और बारिस ।

    मौसमों से नही है रंजिश ।।


आंधी-तूफान रहे नही रोके ।

हर मुश्किल से गुजरा मैं होके ।।


हिम्मत नही हारता चाहे हो बाढ।

    लांघ दूं समंदर चीर दूं पहाड़।।


बसा दी है बस्ती बना बना के घर।

मेरे श्रम का नमूना आज के शहर ।। 


     नदियों पर, बांध बंजर में खेती।

मेरे पसीने से चमकते है हीरे मोती ।।

क्या सड़के क्या ब्रिज ।

आधुनिक युग की हर चीज ।।


   मेरी मेहनत का ही फल है ।

   नहरों में जो निरमल जल है ।।


भूखा प्यासा पर नही हताशा ।

मुझको छू नही सके निराशा ।।



    सूरज निकले तो निकलूं घर से ।

   हारू ना अंधियारों के डर से ।।


दिन और रात करूं मैं मेहनत ।

रहे सलामत मेरी सेहत।।


खून पसीना से जग सींचू ।

कभी हाथ ना पीछे खींचू।।


  बढ़े कदम आगे ही आगे ।

  आलस मुझसे दूर है भागे ।।


मेहनत और श्रम मेरी पूजा ।

इससे बड़ा ना कर्म है दूजा ।।


 श्रम  से  करता जीवन यापन ।

   श्रम ही मेरी श्रद्धा पूजन ।।


कवि  हरेराम चौरे विकट 

🌷🙏🌷

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