अगर हमे लगता है बोझ । बंद करो ये मृत्यु भोज।।

 बंद करो ये मृत्यु भोज 



अगर हमे लगता है बोझ ।

बंद करो ये मृत्यु भोज।।


सदियों से चली आ रही ,

रीत ये रूढ़ि लगती है ।

इसे और अपनाएगी, 

क्या आज की पीढ़ी लगती है ।।

यह भी एक सवाल है, 

पहले इसका हल तो खोज।

अगर हमे लगता है बोझ, 

बंद करो ये मृत्यु भोज।।


विधि विधान नियती का यह है, 

जो आता वह जाता हैं ।

उदय अरूण होता तो हैं, 

पर अस्त भी हो जाता हैं रोज ।।

अगर हमे लगता हैं बोझ, 

बंद करो ये मृत्यु भोज।।


नियम, धरम ,रीति रिवाज, 

ये सब समाज के हित हैं ।

जब -जाब टूटी ये मर्यादा, 

तब-तब हुए कुछ अनहित हैं।।

अगर समाज उचित समझे तो, 

बैठ के चर्चा करे एक रोज ।।

अगर हमे लगता है बोझ,

बंद करो ये मृत्यु भोज।।


कर्ज उठाकर फर्ज करो,

ये हैं कैसी रीत।

ऐसी रीत से प्रीत न कर,

जिसमे हो अनहित ।।

समरथ के लिए पर्व ये होगा, 

पर मोहताज के लिए हैं बोझ।

अगर हमे लगता हैं बोझ, 

बंद करो ये मृत्यु भोज।।


हरेराम चौरे   विकट

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