।।जागरूकता ।।
![]() |
प्रहलाद सिंह चौरे |
मानवता ही श्रेष्ठ धर्म है । जीवन का यही सार मर्म है ।।
स्वतंत्रता का जीवन जी लो । स्वयं सिद्ध यह अमृत पी लो ।।
गर्व से आगे बढ़ना सीखो । अपनी लड़ाई लड़ना सीखो ।।
भूखे पेट चाहे तुम रहना । गुलामी को तुम कभी न सहना ।।
एकता की कीमत है भारी । सच्ची ताकत यही तुम्हारी।।
स्वयं ही शक्ति जगाओ अपनी। साथ न देगी छाँव भी अपनी।।
आँखें खोलकर जीना सीखो ।गफलत में रहना नहीं सीखो।।
सच्चा ज्ञान अपना पहचानो । परायों का उधार ही जानों ।।
स्वतंत्र रहकर जीना सीखो । गुलामी ओढ़कर तुम नहीं चीखो ।।
इधर उधर मत ताक के देखो। अंतर मन में झाँकने के देखो ।।
नशे की आदत कभी न डालो । इसका शौक तुम कभी न पालो ।।
बचपन के तुम खेल न खेलो । जागरूक हो ज्ञान भी ले लो ।।
पाखंड भी है बुरी बिमारी । तबाह हुई मानवता सारी।।
राष्ट्र हित में काम करो तुम। जग में अपना नाम करो तुम.।।
शरीर बनालो फौलादी सब । सुरक्षा परिश्रम दोनों हेतु अब ।।
सत्य को परखो झूठ न मानो। सत्य झूठ में अंतर जानो ।।
जिसको भरोसा अपने पर है। उसको फिर काहे का डर है।।
शिक्षा को अनिवार्य बना लो। जीवन मालामाल बना लो।।
प्रहलाद सिंह चौरे