पतन की राह छोड़कर जतन की राह पर चलें समाज हित के लिए अग्रसर रहें

श्री देवेश्वर कुल्हारे जी

      सामाजिक संदेश- समाज हित के लिए अग्रसर रहें 

     पतन की राह छोड़कर जतन की राह पर चलें  

 सम्मननीय स्वर्गीय श्री देवेश्वर कुल्हारे जी खंडवा के वरिष्ठ सामजसेवी  थे। मै जब भी खंडवा पहुॅचा उनके सानिध्य में सामाजिक  चर्चा करने का अवसर मिला। उनके पास समाज के पुराने कई दस्तरवेजों का संकलन था। वे एक आदर्श समाज सेवी,लेखक, और समाज सुधारक थे। 

उन्होंने समाज के लिए अपने संस्मरण में बहुत कुछ लिखा। वे लिखने में असमर्थ होने के बाद भी निरंजर लेखन कार्य में संलग्न  रहते थे। जब मिलता था तो कुछ मुझसे भी लिखवाया था जो उनके संकलन में संग्रहित होगा। यह पत्र उन्होंने 08 नवम्बर 2000 को सारंगपुर में आयोजित विशाल कतिया जन सम्मेलन की स्मारिका कतिया गौरव में प्रकाशन के लिए लिखा था। अब उनकी स्मृति शेष है। उनकी जीवनी समाज लिए प्रेरक व मार्गदर्शक होगी। उनकी जीवनी लेखन में उनके समकक्ष साथी सहयोगी इस कार्य में सहयोग करेंगें! एसा विनम्र निवेदन है।                                                                                                                               सम्पादक- अनिल भवरे  

आदरणीय भवरे जी,

        दिनांक 8 नवम्बर 2000 को सारंगपुर में हुये कतिया समाज के सम्मेलन में एक मंच पर एकत्रित सामाजिक संगठन के लिये जो भी व्यक्ति या सज्जन वहां पर उपस्थित हुए और अपने कतिया समाज को एक सूत्र में पिरोकर समाज में व्याप्त कुरीति को दूर कर समाज को उन्नति के मार्ग पर चलने के लिये जो अपने विचार व्यक्त किए, श्रेष्ठ व्यक्तियों को मैं हार्दिक बधाई देता हूं। ऐसी कामना करता हूं कि वे हमेशा समाज हित के लिये अग्रसर रहें। और समाज को एक बड़ा योगदान तन-मन-धन से देते रहें।

           युवकों में जोश और बुजुर्गो में होश की प्रधानता होती है। कुछ करने की तमन्ना होती है बुजुर्गो में उतना जोश नहीं होता, कोई कार्य सही और सफलता के साथ सम्पन्न करने के लिये जोश और होश दोनों की ही आवयश्कता होती है। अतः समाज देश को दोनों की ही आवश्यकता होती है।

           अतः समाज देश को दोनों की आवश्यकता है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक है, नवयुवक व्यक्ति और बुजुर्ग व्यक्ति दोनों समाज रूपी रथ के पहिए है। धर्म के लिये सत्य जरूरी है और समाज के लिये संगठन जरूरी है। मेरा समाज के नवयुवकों एवं बुजुर्गो में यही निवेदन है कि वे संपूर्ण भारत में फैले कतिया समाज को एक मंच पर लाने के लिये प्रयत्नशील रहे और भारत देश में एक विशाल रूप से कतिया समाज का संगठन मजबूत हो। मैं अपने समाज के बुजुर्गो, नवयुवकों और बच्चों से यही आशा करूंगा कि वे अपने समाज को एक मजबूत समाज श्रेष्ठ समाज बनाएं। समाज की तरक्की में समय दें और एक मजबूत संगठन बनाने में सहभागी तथा अग्रसर रहें। 

           इस संसार के बदलते परिवेश में कतिया समाज के स्वजातीय बंधुओं को सूचित करते हुये हर्ष हो रहा है कि हम सभी कुल की रूढ़ीवादी परम्पराओं का बोझ ढोते हुये कई वर्षो से चले आ रहे है। ये परम्पराएं आध्यात्मिक,नैतिक, भौतिक या अन्य रीति-रिवाजों को लेकर जहां से चले दो-चार कदम बढ़ते हैं फिर ठहर गए, पर, मंजिल अभी दूर है। इन बातों का मनन चिंतन अध्ययन होते हुये भी हमारी विचारधारा अलग-अलग है। अन्दर समाज में एकता की जगह फूट नजर आती है। इन बातों के पीछे न तो हमारे समाज में फुरसत है,ना ही समाज के कोई नियम है। आपसी मतभेद एवं द्वेषभावना नजर आती है,खींचातानी में हमारी कतिया समाज बंट रही है। क्या हम यह भविष्य में अपनी पहचान खोने के प्रयास नही कर रहे। हमने भूतकाल में कई तरह के अत्याचार और प्रलोभन में आकर अपनी उत्पत्ति ही भूल गए और वही इतिहास दोहराया जा रहा है। क्या हम भविष्य में अनेक पंचों के नाम से जाने जाएंगे। समाज एक वटवृक्ष की तरह है। इस वृक्ष की शाखाएं अैर वृक्ष एक सूखे ठूंठ की तरह समाज को जोडे हुये है। अभी भी मौका है कि हमारे कतिया बंधु चिंतन मंथन करके एकता बनाने मे और अगली भावी पीढ़ी को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार दे सकें और प्रगति पथ पर अग्रसर हों। जो पतन की राह छोड़कर जतन की राह पर चार कदम चले हैं उसे और आगे बढ़ाना है। 

            इसलिए कतिया समाज के सभी बुधओं से प्रार्थना है कि हम सभी मिलकर एक नए इतिहास की रचना करके समाज सेवा का पुण्य लाभ उठाएं। इसी कामना के साथ।

   - देवेश्वर कुल्हारे 

वरिष्ठ सामज सेवक, खण्डवा म.प्र. 


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