🌧️पाणी बाबा आई जा रे🌧️
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क्षेत्रीय भुआणि बोली में कवि प्रहलाद सिंह चौरे की कवितापाणी बाबा आई जा रे l
काँकड़ी भुट्टा लाई जा रे l
सोयाबीन मुरझाई रह्या सब,
थारी आश लगाई रह्या सब,
बद्दल होण बरसाई जा रे l
पाणी बाबा आई जा रे l
खाळ्या,खोदर्या सुकी गया सब,
नद्दी ,नाळा रुकी गया सब,
इनकी धार चलाई जा रे l
पाणी बाबा आई जा रे l
टुगुर टुगुर देखी रह्या सब,
अपणा हाथ टेकी रह्या सब,
थोड़ो तो तरस खाई जा रे l
पाणी बाबा आई जा रे l
घाम म घमळाई गया सब,
पसीना म सपड़ाई गया सब,
तू भी अब सपड़ाई जा रे l
पाणी बाबा आई जा रे l
कुआँ,बावड़ी सुकी गया सब,
पाणी ले ण दुखी हुया सब,
सब ख पाणी पिलाई जा रे l
पाणी बाबा आई जा रे l
मवेशी होंण जंगल म प्यासी,
जंगल म प्यासा वनवासी,
सबकी प्यास बुझाई जा रे l
पाणी बाबा आई जा रे l
--------प्रहलाद सिंह चौरे,हरदा🙏