एक बार फिर से इंकलाब आ जाने दो

 एक बार फिर से इंकलाब आ जाने दो 


सन् सत्तावन वाली क्रान्ति का 

वो सैलाब, आ जाने दो ।

एक बार फिर से भारत में,

इंकलाब आ जाने दो 

हमने पाल रखे हैं,अपनी 

आस्तिनों मे सांप जो,

आये दिन गाते रहते हैं, 

विषैले आलाप वो ।

इनके फन कुचलने होंगें, 

सर ना इन्हे उठाने दो।।

एक बार फिर से भारत में,

इंकलाब आ जाने दो ।।


धर्मनिरपेक्षता की आड़ मे 

ये लगे हुए हैं जुगाड़ में, 

सदा छिपाकर रखते हैं, 

तलवारें घर की बाड़ में,

हिन्दू मुस्लिम भाई भाई 

ये नारा अब ना गाने दो ।।

एक बार फिर से भारत में, 

इंकलाब आ जाने दो ।।


हिन्दू राष्ट्र न घोषित होगा 

जब तक देश हमारा, 

तब तक सहना होगा सबको

काफिरों का क्लेश सारा,

क्यों करें इनको बर्दाश्त हम,

इनको बाहर जाने दो ।।

एक बार फिर से भारत में,

इंकलाब आ जाने दो ।।


इनका मकसद है कि इनकी

 ज्यादा से ज्यादा संख्या हो, 

ऐसा बने कानून कि इनकी 

पूरी ना कोई मंशा हो 

ये कभी हमारे हो नहीं सकते 

इनको भाव न खाने दो।।

एक बार फिर से भारत मे 

इंकलाब आ जाने दो ।।


- हरेराम चौरे *विकट*

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