यह अवनि है...
यह अवनि है अमृत का घट
दुर्लभ रत्नों का का जमघट
कस्तूरी नाभि बसी
भटक रहा क्यों?
इधर-उधर मृग!
यही कुबेर का छिपा खजाना
खोल जरा तू अपने ये दृग
संजिवनी है उदर में इसके
व्यर्थ कामना करें स्वर्ग की
वन उपवन है इस वसुधा पर
आसमान में मणियों के संग
रजत बिंदु जो चमक रहा है
इसी के सिंधु से निकला इंदु
सदियों से जो दमक रहा ll
सर्व शक्ति है महा ज्ञान
इसका मत करना गुमान
अडिग हौसले और हिम्मत से
जो भी लोगे मन में ठान
सब कुछ पाओगे प्रयत्न से
हमें मिला कामधेनु का दान
- हरेराम चौरे "विकट"