रचना के पुष्प चढ़ाते माँ सरस्वती के चरणो

 अपनी रचना के पुष्प चढ़ाते 



माँ सरस्वती के चरणो मे 

मन के भावो के सुमन रचयिता 

गूथते है हिन्दी के वर्णो मे।।


जहा न पहुचे रवि

वहा पहुचे कवि 


रवि और रचनाकारो का

यू तो कोई तोड़ नही 


एक कलम से 

एक किरणो से 

फैलाते है प्रकाश 

पर आपस मे

कोई होड़ नही ।


मेरा भारत करोड़ी मल है 

करोड़ो के ईस देश मे 


कई धर्म कई जातिया 

मिलती है ईस देश मे ।


अनेकता मे एकता 

भारत की विशेषता 


राम और कृष्ण की धरती पर 

वास करते है देवता ।


किसी रचना की 

किसी एक पंक्ति से 

कोई एक भी जाग जाता है, 


रचनाकार का शब्द बाण

लक्ष्य भेदकर जाता है 


इतिहास गवाह है 

रचनाकारो की कलम ने

जब जब भी श्याही उगली है 


बड़े बड़े बादशाहो की

सल्तनते बदली है 


चाणक्य जैसे नीति वान

बिरबल की चतुराई का

जग जाहिर उदाहरण है 

सूर, तुलसी मीरा बाई का ।


हरेराम चौरे विकट

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