कविता - देश मे लूटम लूट मची

 देश मे लूटम लूट मची



सूरज सर पे चढ़ आया, आने को है दोपहरी ।

देश मे लूटम लूट मची,हम नींद  ले रहे गहरी।।


चौकीदार  भी ऊंघ रहा, पडोस का कुत्ता सूंघ रहा ।

मौका परस्त  मौके की ताक मे,फिरका परस्त है फिराक मे ।।

अगर वक्त पर नही जागे, चोट मिलेगी ही गहरी ।।


डाला डल पर उल्लू बैठे, चूहे बिल मे चले गए, 

किया भरोसा हमने  जिन पर,उनके ही हाथों छले गए।।

हाथ मलते रह गए ,सब कुछ ले भागा प्रहरी ।।


दोष किसी को क्या देना,हम भी तो बिक जाते है ।

बड़े बड़े वादे करते ,साल जम जाते है ।।

ऊँगली से श्याही नही उड़ती, वादे भूल गए जौहरी ।।


वोट हमारा ब्रह्मास्त्र है, इसका सही प्रयोग करो।

निष्ठावान कर्ण की भाती पापीयों संग नहीं मरो।।

सोचो,समझो,जांच परख लो,और फिर चाल चलो गहरी ।।


                        -  हरेराम चौरे  "विकट"

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