*मेरे आंगन की लतिका *
मेरे आंगन की वह लतिका
बरामदे के ऊपर झूलती लतिका
अप्सरा के गेसुओं सी बिखरी
हरित पर्ण गोद में समेटे
पवन के संग लहराती
भौरे के संग कुछ गुनगुनाती
वह बिखरी लतिका
ठहरी है वह उसके सहारे
जो सबल है
अपने तन को लपेटे
रात में नील गगन तले
चाँदनी से करती गुपचुप
सूरज से पाती खिली सी धूप
जब मैं नीर सुधा सा देती उसको
चहक उठती वह महकती वसुधा संग
नित नीर मैं उसे पिलाती
अपनी उँगलियों से सहलाती
हरित लतिका
आस है
हमेशा वो हरित ही रहेगी
हँसती मुस्कुराती
वसुधा पर भी
मेरे हृदय में भी
चहकती वह सुंदर सी लतिका.......
*निशा रामकुचे*- *'अविरल'*
ramkuchenisha786@gmail.com
पिता- महेश कुमार रामकुचे