निःस्वार्थ भाव से हो सामुहिक प्रयास
जो जाति अपनी संस्कृति को भूल जाती है,अपना इतिहास भुला देती है और अपने पूर्वजोे के प्रति उदासीन हो जाती है,वह समाज या जाति तेजी से पतन की और अग्रेषित हो जाता/जाती है।
कतिया समाज को सही दिशा एवं मार्गदर्शन देने का कार्य वास्तव में निःस्वार्थ होकर समाज के पढे लिखे नवयुवक एवं नवयुवतियों को करने के लिये आगे आना चाहिए। ’मै’ और ’मेरा परिवार’ से ऊपर उठकर कतिया समाज के हित के बारे में सोचना चाहिए। आज मुझे बड़े अफ़सोस एवं दुःख के साथ लिखना पड़ रहा है, कि आज हमारे कतिया समाज के नाम से हमारे समाज के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियो ने कई संगठन बना रखे है। जिनमें वह स्वयंभू पदाधिकारी बनाकर उस संगठन को सुशोभित कर रहे हैं। जो पुरे देश एवं प्रदेश में एक ही नाम से होना चाहिये था ’अखिल भारतीय महा-कतिया समाज’ उस समाज के आज कई नाम है। आप सभी बुद्धिजीवो से मेरा नम्र निवेदन है की आप सब मिलकर मुझे यह बताओ की अभी हम सब एक कहॉ है जब हमारे कतिया समाज का ही एक नाम नहीं है। तो हम सब कैसे एक हुऐ एक ही देश में एक नाम से अलग - अलग रजिर्स्ट्रड संगठन अलग - अलग पदाधिकारी जो कभी सामूहिक रूप में कतिया भाई होते हुये भी कभी एक जगह एकत्रित नहीं होते बस एक दूसरे की आलोचना करते रहते है। जब वह सब सम्मानीय बुद्धिजीवी ही संगठित नहीं है। तो शासन एवं प्रशासन भी उनकी किसी भी बातों को कोई महत्त्व नहीं देता। गरीब,मध्यम वर्ग और गाँव, के सामाजिक बन्धु आज तक कतिया समाज के संगठनो से कितनी दूर है और वे सब किस प्रकार से भ्रमित है,इस विषय पर कभी किसी ने सोचा है। क्योंकी हमारे कतिया समाज के जितने संगठन हे वो सभी शहरो तक ही सिमित है। यदि सच कहा जाय तो आज के समय में किसी भी हमारे सामाजिक संगठन और उसके पदाधिकारीयों ने शायद ही कही पर भी कोई भी समाजिक उत्थान की तो बात छोड़ो शायद ही समाज में व्याप्त कुरीतियो के निराकरण के लिए कभी कोई मुहीम चलाई हो या कभी चलाने का प्रयास किया हो। केवल पद ग्रहण कर के समाचार पत्रो की सिर्फ शोभा बढ़ाते है। अब समय आ गया हे की हमारी युवा पीढ़ी को समाज में व्याप्त कुरीतियो के निदान के विषय में सोचने का।क्योंकि युवाओं में वह ताकत होती है कि वह अपनी युवा सोच एवं क्रांति से किसी भी समाज की तो बात ही क्या देश की भी तस्वीर बदल सकते है। बस आवयश्कता है उन्हें कतिया समाज के उत्थान जैसे शिक्षा के महत्त्व को समझना,बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का महत्त्व,दहेज़ प्रथा का अंत,मृत्यु भोज पर मात्र दिखावे के लिए धन का वेवजह दुरूपयोग, मदिरापान (शराब) पर प्रतिबंध, आदि के विषय में सही दिशा एवं मार्ग दर्शन देने की। यदि युवाआंे में इन कुरीतियो के प्रति जागरूकता आ गई तो एक दिन हमारा समाज जरूर एकजुट होगा। युवाओ पर में ज्यादा जोर इस लिए दे रहा हूँ की जिस देश और समाज का युवा मजबूत होता है वह देश और समाज सबसे अधिक मजबूत और शक्तिशाली होता है। युवा अपने समाज के लिए रीड़ की हड्डी की तरह कार्य करता है।
अपने समाज के लिए दो लाइने- फूलो की कहानी,बहारो ने लिखी,रातो की कहानी, सितारों ने लिखी। कतिया नहीं किसी,कलम के गुलाम,क्योंकि कतियाओं की, कहानी तलवारों ने लिखी।
- विजेन्द्र चंदेले
रेल्वे कॉलोनी,आदिलाबाद,तेलंगाना