नियति का प्रकोप
प्राण वायु का कमण्डल,
रिक्त हुआ क्या वायु मण्डल,
नियति - नटि का प्रकोप है,
या मानवता हो गई निर्मम,
आविष्कारो का विकास है,
फिर क्यों हो रहा सर्वनाश है|
वर्तमान निर्वाण बना है,
नव - निर्माण क्या होगा कल |
आपदा और विपदा,
आती ही है यदा कदा,
अवसर फिसल गया हाथों से,
नष्ट हो रही संपदा |
सिंधु मंथन में प्रथम,
शेष नाग ने विष उगला,
कौन बनेगा नीलकण्ठ अब,
जिसने सार विष निगला,
अपने हाथ खड़े कर दये,
वसुधा के भगवानो (डॉक्टरों)ने,
क्या हम सब ने हार मान ली,
कर्म योगी इंसान ने |
हरेराम चौरे "विकट"