गोस्वामी तुलसीदास जी के शिक्षाप्रद दोहे

 गोस्वामी तुलसीदास जी के शिक्षाप्रद दोहे 

1. तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग।

सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग॥

अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, इस संसार में तरह-तरह के लोग रहते हैं। आप सबसे हँस कर मिलो और बोलो जैसे नाव नदी से संयोग कर के पार लगती है, वैसे आप भी इस भव सागर को पार कर लो।


2. आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह।

तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, जिस स्थान या जिस घर में आपके जाने से लोग खुश नहीं होते हों और उन लोगों की आँखों में आपके लिए न तो प्रेम और न ही स्नेह हो। वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की हीं वर्षा क्यों न होती हो।


3. तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।

साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, विपत्ति में अर्थात मुश्किल वक्त में ये चीजें मनुष्य का साथ देती है। ज्ञान, विनम्रता पूर्वक व्यवहार, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, सत्य और राम ( भगवान ) का नाम।


4. काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।

तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, जब तक व्यक्ति के मन में काम की भावना, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं। तब तक एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नहीं होता है, दोनों एक ही जैसे होते हैं।


 5. दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।

तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, धर्म का मूल भाव ही दया हैं और अहम का भाव ही पाप का मूल (जड़) होता है। इसलिए जब तक शरीर में प्राण है कभी दया को नहीं त्यागना चाहिए।


6. तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।

बसीकरन इक मंत्र है, परिहरू बचन कठोर॥


अर्थ : तुलसीदासजी कहते हैं, मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं। किसी को भी वश में करने का ये एक मन्त्र है इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोड़कर मीठा बोलने का प्रयास करे।


7. तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।

अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, भगवान् राम पर विशवास करके चैन की बांसुरी बजाओ। इस संसार में कुछ भी अनहोनी नहीं होगी और जो होना उसे कोई रोक नहीं सकता। इसलिये आप सभी आशंकाओं के तनाव से मुक्त होकर अपना काम करते रहो।


8. तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन।

अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिहै कौन॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, वर्षा ऋतु में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी ज्यादा हो जाती है कि, कोयल की मीठी वाणी उनके शोर में दब जाती है। इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है। अर्थात जब धूर्त और मूर्खों का बोलबाला हो जाए तब समझदार व्यक्ति की बात पर कोई ध्यान नहीं देता है, ऐसे समय में उसके चुप रहने में ही भलाई है।


9. सहज सुहृद गुरस्वामि सिख जो न करइ सिर मानि।

सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि॥


अर्थ : स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता, वह दिल से बहुत पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है।


10. मुखिया मुखु सो चाहिऐ, खान पान कहुँ एक।

पालइ पोषइ सकल अंग, तुलसी सहित बिबेक॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है।


11. तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।

भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण॥


अर्थ : तुलसीदास जी कहते हैं, समय ही व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ और कमजोर बनता है। अर्जुन का वक्त बदला तो उसी के सामने भीलों ने गोपियों को लूट लिया जिसके गांडीव की टंकार से बड़े बड़े योद्धा घबरा जाते थे।


जय श्रीराम,,,जय जय श्रीराम,,

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