युवा कार्नर
देश व समाज की जरूरत हैं युवा
आंखों में उम्मीद के सपने नई उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को अपनी मु्ठ्ठी में करने का साहस रखने वाला युवा कहा जाता है। कतिया समाज को जड़त्व से गतिमान बनाने के लिये युवाओं की आज सतत आवश्यकता है । समाज के लिए समय उन्हें जरूर देना चाहिए। युवा शब्द ही मन में उड़ान और उमंग पैदा करता है। उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा के बल्कि उसके परिवार , समाज व राष्ट्र का भविस्य तय किया जा सकता है। आज के भारत को युवा भारत कहा जाता है क्योंकि युवाओं की संख्या अधिक है । ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुुनौती । महत्वपूर्ण इसलिए भी यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाये तो इनका जरा सा भी भटकाव समाज व राष्ट्र के भविस्य को अनिश्चितता की ओर ले जा सकता है ।
युवाओ की समाज में आज अत्यधिक आवश्यकता है । समाज के लिए समय उन्हें जरूर देना चाहिए। युवा शब्द ही मन में उड़ान और उमंग पैदा करता है। उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा के बल्कि उसके परिवार , समाज व राष्ट्र का भविस्य तय किया जा सकता है। आज के भारत को युवा भारत कहा जाता है क्योंकि युवाओं की संख्या अधिक है । ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुुनौती । महत्वपूर्ण इसलिए भी यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाये तो इनका जरा सा भी भटकाव समाज व राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चितता की ओर ले जा सकता है ।
लक्ष्य हीनता का माहौल
आज का एक सत्य यह भी है कि युवा बहुत मनमानी करते है ओर किसी की सुनते नहीं दिशाहीनता की इस स्थिति ने युवाओं की उर्जा को नकारात्मक दिशााओं की ओर मार्गान्तरण व भटकाव होता जा रहा है । लक्ष्यहीनता के माहौल में युवाओं का इतना दिग्भ्रमित करके रख दिया है ।उन्हे सूझता ही नही कि करना क्या है ? हो क्या रहा है ? और आखिर उनका होगा क्या ? युवा शक्ति का सम्पूर्ण दोहन सुनिश्चित करने की चुनौती इस समय सबसे बड़ी है जब तक यह उुर्जा और आन्दोलन सकारात्मक रूप से है तक तक तो ठीक है पर ज्यों ही इनका नकारात्मक रूप में इस्तेमाल होने लगता हे वह विध्वंसात्मक बन जाता हें। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर किन कारणों से युवा ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल नहीं हो पा रहा । वस्तुतः इसके पीछे जहां एक और अपनी संस्कृति और जीवन मूल्यों से दूर हटना है , वहीं दूसरी तरफ हमारी शिक्षा व्यवस्स्था का भी दोष है। इन सबके बीच आज का युवा अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करता । फलस्वरूप् वह शार्टकट तरीकों से लम्बी दूरी की दौड़ लगाना चाहता है। जीवन के सारे मूल्यों के उपर उसे अर्थ भारी नजर आता है। इसके अलावा समाज में नायकों के बदलते प्रतिमान ने भी युवाओं के भटकाव में कोई कसर नहीं छोड़ी है; फिल्मी परदे के नायकों की दुनियां के भांति रातों रात शोहरत और मंजिल को पा लेना चाहता है। जो सिर्फ एक मृग तृष्णा है।
नैतिक मूल्यों का पतन
ऐस में एक तो उम्र का दोस उस पर व्यवस्था की विसंगतियां , सार्वजनिक जीवन में आदर्श नेतृत्व का अभाव एवं नैतिक मूल्यो का अवमूल्यन ये सारी बातें मिलकर युवाओं को कुण्ठाग्रस्त एवं र्दुभावना से भरकर,भटकाव की ओर ले जाती हें। नतीजन-शोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं । आर्थिक उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के बाद कम्पनियों को बाजारी लाभ की अंधी दौड़ उपभोक्तावादी विचारधारा के अंधानुकरण ने उसे ईर्स्या प्रतिस्पर्धा ओर शार्टकट के गर्त में धकेल दिया है; कभी विद्या, श्रम, चरित्रबल और व्यावहारिकता को सफलता के मानदण्ड माना जाता था पर आज सफलता की परिभाषा ही बदल गयी है। ऐसे में युवाओं को सामाजिक दायित्व का बोध कराया जाना जरूरी है।
आदर्श नेतृत्व का अभाव- आज का युवा अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों से परे सिर्फ आर्थिक उत्तरदायित्वों कीे ही चिन्ता करता है। युवाओं को प्रभावित करने में फिल्मी दुनिया और विज्ञापनों का काफी बड़ा हाथ रहा है पर पर इनके सकारात्मक तत्वों की बजाय नकारात्मक तत्वांे ने ही युवाओं को ज्यादा प्रभावित किया है । शिक्षा एक व्यवसाय नहीं संस्कार है, पर जब हम आज की शिक्षा व्यवस्था को देखते है तो यह व्यवसाय ही ज्यादा नजर आता है; युवा वर्ग स्कूल व कालेजों के माध्यम से ही दुनिया देखने की नजर पाता है। आदर्श नेतृत्व ही युवाओं को सही दिशा दिखा सकता है। कभी विवेकानंद जैसे व्यक्तित्व ने युवा कर्मठता का ज्ञान दिया तो सन 1977 में लोकनायक के आहवान पर सारे देश के युवा एक होकर सड़को ंपर निकल आये, पर आज यही युवा अपनी आत्म शक्ति को भूलकर चन्द लोगों के हाथों का खिलौना बनकर गए है। युवाओं ने आरंभ से ही इस देश में प्रत्येक आंदोलन में रचनात्मक,भूमिका निभाई है। चाहे वह सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक या सांस्कृतिक कोई भी हो। लेकिन आज के युवा आंदोलनों के पीछे किसी सार्थक उदृदेश्यों का अभाव दिखता है। युवाओं को भी ध्यान देना होगा कि कहीं उनका उपयोग सिर्फ मोहरों के रूप में न किया जाये ।
हेमराज लामकूचे
पीएचडी कम्प्यूटर
इम्फोसिस विश्वविद्यालय पूना मो.नं.- 07387114521