नेतृत्व परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन- स्वजन संवाद

 अगस्त- सितम्बर 2017 अंक 

 स्वजन संवाद - नेतृत्व परिवर्तन से सामाजिक परिवर्तन  

         हमे यह कभी नही भुलना चाहिये कि समाज को नई दिशा   देना,स्वजनों में उत्साह उमंग के साथ नई सोच प्रदान करना,भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करना,समाज के लोगों मे त्याग,समर्पण और विस्वास की भावना पैदा करना,समाज के प्रति लोगो को उतरदायी बना कर उन्हें जिम्मेदार बनान,समाज के नेतृत्व करने वालों का ही कार्य है।

आज समाज में समिति बनाने व अध्यक्ष बनने होड सी लगी है,सेवा तो मात्र दिखवा रह गया है। हर कोई समाज का नेतृत्वकर्ता अध्यक्ष बनकर बडा समाजसेवी कहलाना चाहता है। भले ही उसमें नेतृत्व के एक भी गुण न हों। याद रहे समाज का नेतृत्व कर्ता जैसा होगा समाज की छवि उसके अनुरूप ही होगी। वैसे किसी भी क्षेत्र में लोग अपने स्तर के अपने,विचारों के अनुरूप ही अपने नेतृत्व कर्ता का चयन करते है, और उनके गुण कर्म स्वभाव के अनुरूप ही समाज की छवि बनती है। इस छवि के  कारण ही लोग समाज का आकलन उसी प्रकार कारते है।

               सामाजिक परिवर्तन के लिए यह एक अच्छी पहल है कि लोग कारण चाहे जो भी हों संगठन बनाकर समाज की सेवा करने जुड तो रहे है। जितने अधिक संगठन व समितियॉ हांेगीं उतने अधिक व्यापक स्तर पर समाज में सेवा कार्य संचालित किए जा सकेंगे। ऐसा सभी लोगों का मानना है। जबकी यह बात वास्तविकाता से परे है। लोगों में समाज सेवा व संगठन के नाम पर सिर्फ दीखावा मात्र रह गया है। यही कारण है कि सामज में खुद को जिला स्तरीय, प्रॉतीय या रास्ट्रीय बताने वाले नेताओं के समर्थन में चंद लोग भी दिखाई नहीं देते। कुछ लोग जो व्यक्तिगत प्रभाव,लोभ लालच या स्वार्थ वश जुड भी जाते है तो वह स्वार्थ पूर्ति तक ही साथ रहते है। जब समाज का नेतृत्व कर्ता ही कंुठित,स्वार्थी,संकीर्ण मानसिकता से ग्रसित,अदूरदर्शी व र्दुव्सनों से पीड़ित हो तथा सुसंस्कारित न हो वह समाज को क्या दे सकेगा। उनसे दीर्घकालिक दूरगामी परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती है। 

               जब प्रश्न समाज के नेतृत्व कर्ता व अध्यक्ष का है तो हमे यह कभी नही भुलना चाहिये कि समाज को नई दिशा देना,स्वजनों में उत्साह उमंग के साथ नई सोच प्रदान करना,भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करना,समाज के लोगों मे त्याग,समर्पण और विस्वास की भावना पैदा करना,समाज के प्रति लोगो को उतरदायी बना कर उन्हें जिम्मेदार बनान,समाज के नेतृत्व करने वालों का ही कार्य है।

                                       वर्तमान प्ररिपेक्ष्य मे देखा जाय तो देश और समाज का नेतृत्व युवा पीढ़ी को सोंपा जाना चाहिये और इसकी निगरानी और मार्गदर्शन समाज के वरिष्ठ जन, बुद्धिमान,सेवानिवृत्त शिक्षक,उच्च पदों पर सेवाऐं दे रहे स्वजन,डॉक्टर, इंजिनियर, वकील, जजों द्वारा की जानी चाहिये। यह ध्यान देने योग्य बात है कि गाड़ी बिल्कुल नई हो और उसके डाईवर की उम्र 55 से 75 वर्ष की उम्र की हो, तो गाड़ी अपना अधिकतम माइलेज कैसे देगी। जिस व्यक्ति का जीवन अब अंतिम पढाव मे चल रहा हो,वो समाज को मंजिल तक कैसे पहुॅचायेगा यह एक विचारणीय प्रश्न है । 

        जहॉ तक युवाओं को समाज का नेतृत्व सौंपने का प्रश्न है, इसकी तो पुरी दुनिया गवाह है वर्तमान परिपेक्ष मे ऐसे अनेक उदाहरण है जिससे चाहे वो उद्योगांे मे टाटा ग्रुप के चेयरमेन कि बात हो जिसके लिए 45 वर्ष सायरश मिस़्त्री को चुना गया तथा राष्ट्रो मे अमेरिका, जिसमे हमेशा युवा राष्ट्रपति चुना जाता है यह पिछले 200 वर्षाे से हो रहा है, और आज वह दुनिया मे नम्बर एक है। हमारे समाज में भी दुनिया को देखते हुए परिवर्तन होना चाहिए।

                आज समाज में एक नयी उर्जा का संचार करने के लिए नवीन उर्जावान नेतृत्व की आवश्यकता है। आज देश की आबादी का 70 प्रतिशत युवा वर्ग है,समाज में भी युवाओं का प्रतिशत यही होगा। ऐसी स्थिती मे युवाओं को समझने के लिए, समाज कि बागडोर युवाआंे के हाथों मे होनी चाहिये। ताकि समाज की गाड़ी अपना सम्पूर्ण माइलेज दे सके, क्योकि किसी गाडी़ को चलाने वाला ड्राईवर जब तक गाड़ी की तरह नया और युवा नही होगा तब तक गाड़ी का वास्तविक माइलेज हासिल नही किया जा सकता । यह बुरा मानने कि बात नही है, लेकिन यह एक सच्चाई है कि, आज समाज हो या देश, संस्थाऐ हो या संगठन, सभी का नेतृत्व 55 से 75 वर्षाे के लोगो के पास अधिग्रहित है, वो उन पर आधिपत्य जमाये बेठे है । उन्हे आज भी भम्र है कि समाज को हम ही नेतृत्व दे सकते है, उम्र के इस पडा़व मे भी उन्हे यह नही लगता है कि उन्हे अब नेतृत्व कि गद्दी को छोड़कर, समाज कि युवा पीढी़ को बागडोर सोपनी चाहिये, ताकि वो अपनी उर्जा और जोश का उपयोग करते हुए उसकी गति को बढावा दे ।

                यह विचारणीय बात है की, किसी भी पद पर एक कार्यकाल किसी भी व्यक्ति को अपने आप को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त होता है, और इसके बाद भी आम जनता यदि नही चाहती, तो भी वह नेतृत्व करना चाहता है। तो यह क्या है, ऐसे व्यक्ति द्वारा समाज और देश के साथ अपने आपको थोपने जैसा है। क्या एक कार्यकाल का समय उसे अपने आपको सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नही था, जो वह केवल कुर्सी के लोभ के चक्कर मे उसे पकड़कर बैठना चाहता है और क्या गारन्टी है कि वो अब कुछ नया कर देगा जो पिछले कार्यकाल मे नही कर पाया, इसकी उम्मीद उससे करना बेमानी है,सरासर बेवकूॅफी है । 

                 इसका सीधा प्रभाव समाज व देश की उस युवा पीढी पर पड़ता है। जिसे समाज से आपेक्षा है कि उसे समाज में संस्कार युक्त वातावरण,प्रेरणात्क आदर्श लोग, आदर्श पारिवारिक माहौल, शिक्षा, रोजगार के साथ स्वयं को सिद्ध करने के अवसरों की उपलब्धता,परिजनों से स्नेह सहयोग आदि आधारभुत साधन व संसाधन मिलने चाहिये थे। जिसके लिए वो आज भी जूझ रहा है। इसमे किसका दोष है, युवा पीढी का या समाज का या समाज पर स्वयंभु शासन करने वालों का ।

                   समाज के नेृतत्व मे गुणो की बात हो तो, युवा पीढी़ के उच्च शिक्षित व आत्मनिर्भर लोगों को आगे लाये जाने की आवश्यकता है, क्योकि जो स्वयं आत्मनिर्भर नही,वो समाज को क्या आत्मनिर्भर बनायेगा। आत्मनिर्भर व्यक्ति ही समाज को दिशा दे सकता है क्योंकि वह हर रोज अपने आपको सफल बनाने के लिए मानव समाज और देश मे अपने आपको प्रतिदिन सिद्ध करता है।  

                  समाज के सरकारी ऑफिसर व बुद्धिजीवी वर्ग से आपेक्षा की जाती है कि यदि वे नेतृत्व करना चाहे तांे उन्हे सरकारी सेवा मे, ‘‘इन पावर‘‘ रहते हुए भी समाज की सेवा करनी चाहिये ताकि वो अपने पावर, संसाधन, ज्ञान, उर्जा का उपयोग जिस क्षमता के साथ सरकार के लिये करते है, उसी क्षमता के साथ समाज के लिये कर सके, अन्यथा सेवानिवृति के बाद समाज के विकास कि बात करना, और उसे दिशा देना भ्रामक है। क्योंकि सेवानिवृति के बाद उनके सारे हथियार, पावर, उम्र, उर्जा, क्षमता, जोश अन्तिम पड़ाव मे होते है, ऐसे मे समाज के नेतृत्व की बात करना, मेरा व्यक्तिगत मत है की यह समाज के साथ खिलवाड़ है। जिससे समाज का बहुत ज्यादा भला होने वाला नही है। ऐसे लोग जैसे ही समाज के नेृतत्व को सम्भालने की बात करते है तो उनके द्वारा सरकारी सेवा मे रहते हुए, समाज के लिए किये गये कार्याे की तरफ सबका ध्यान जाता है। यदि उन्होने कुछ किया है तो उनके कार्याे को ध्यान मे रखते हुए ही उनके साथ समाज के लोग जुड़ते है और लोग उनका सहयोग करते है। इस दौरान सरकारी सेवा मे रहते हुए समाज के लोगो के प्रति उनका क्या रवैया रहा, यही उनकी सफलता को तय करता है। ऐसी स्थिति मे उनके पूरे कैरियर के कार्यकलापो पर लोगो को टिप्पणी करने का मौका मिलता है जिससे नेतृत्व कर्ता की प्रभावशीलता कम होती है, जबकि युवा नेतृत्व मे यह कमी नही होता है क्योंकि वह नया होता है। उसमें सीखने की अपार क्षमता होती है, जो वरिष्ठों में नही होती। 

                         मेरा मानना है की समाज का नेतृत्व नये,उर्जावान, युवा, आत्मनिर्भर, त्यागवान, उच्च शिक्षित व्यक्ति के हाथो मे सोपा जाना चाहिये और ऐसे युवा वर्ग को ही समाज के विकास की धुरी बनाया जाना चाहिये, ताकि वो लम्बे समय तक समाज के विकास मे सहयोग दे सकंे और एक एसी व्यवस्था निर्मित की जा सके जिसमें जिम्मेदार लोग ही आगे आऐं, अन्य लोग स्वार्थपूर्ति न कर सकें। जिन कारणों से कतिया समाज के सामाजिक नेतृत्व का पतन हुआ है उसके लिए आप हम सबके साथ ही समाज का उच्च शिक्षित वर्ग भी जिम्मेदार है। समाज को दिशा देना या समाज का विकास करना, यह हम सबकी जिम्मेदारी है, जिससे हम पीछे नही हट सकते ।

                            यह विचारणीय प्रश्न है कि हम इतने काबिल बुद्धिमान, साधन सम्पन्न होने के बावजूद समाज को कुछ नही देते,तो इस समाज मे हमारा पैदा होना ही व्यर्थ है। हमे यह कभी नही भुलना चाहिये की समाज मे पैदा होने, विवाहित होने, मरने के बाद, अन्तिम यात्रा तक समाज से हमने सिर्फ लिया ही है। जब समाज से अब तक बहुत कुछ पाया है, तो यह सोचना चाहिये की समाज को हमने क्या दिया है ।

                         कहते है जिधर जवानी जाती है उधर जमाना जाता हैै। आज देश और समाज की जनसंख्या मे 70 प्रतिशत युवा पीढी है। जनाधार भी देखा जाये तो उनका ही है। कार्यकर्ताआंे की संख्या मंे भी वे ही अधिक है। आने वाला कल भी उनका ही है, ऐसे मे उनको अनदेखा करना, उचित नही है। आज हमारी भावी युवा पीढी क्या चाहती है, मेरा मानना है की आज की युवा पीढी, युवा नेतृत्व चाहती है, जो समाज के विकास की गति को बढावा देसकें। 

 आईये कतिया समाज को जगसिर मौर बनाऐं। आप सब के सहयोग और कुशल नेतृत्व से यह संभव है।

विनम्र आभार सहित आपका ही

- अनिल भवरे 



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