स्वप्रेरित हो कर करें सामाजिक कार्य -डॉ. चौरे जुलाई-अगस्त 2016 अंक

स्वप्रेरित हो कर करें सामाजिक कार्य -डॉ. चौरे

 डॉ महेन्द्र कुमार चौरे


सामाजिक प्रगति में बाधक है संकीर्ण मानसिकता

                     सामाजिक एकता के लिए जागरूक लोग अपने स्तर पर निरंतर प्रयासरत् हैं। फिर भी समाज में एकता न हो पाने का कारण प्रत्येक स्तर पर असमानता होना है। समर्थ,असमर्थ,सक्षम और असक्षम लोगों में सदैव असमानता रही हैं। मुख्यतः वैचारिक,बौद्धिक और आर्थिक असमानता। साथ ही हमारी भिन्न मान्यताऐं भी समाज में अलगाव का कारण है। समाज में लगभग मात्र दस फीसदी लोग ही हैं जिन्हें हम सम्पन्न या सक्षम मान सकते है,जो आगे है। लेकिन वे पीछे मुड़कर नहीं देखते! यदि वे अपनों के लिए सहयोगात्मक कदम उठाऐ तो आने वाली पीढ़ी को प्रेरित कर अग्रिम पंक्ति मंे ला सकते है।

                           लोगों की सकीर्ण मानसिकता ही सामाजिक उन्नति में सबसे बड़ी बाधा है। एकता के लिए हमारे विचारों में खुलापन होना चाहिए। सही गलत का निर्णय लेने की योग्यता, सत्य का समर्थन और गलत का विरोध करने की क्षमता होनी चाहिए। 

                           सामाजिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियम बनाने चाहिए। जिनका कठोरता से पालन करने कराने में प्रत्येक व्यक्ति व संस्था का सहर्ष,स्वैच्छिक,कर्तव्यबोध से प्रेरित सहभागिता प्रत्येक के लिए अनिवार्य  हो। उदाहरण के लिए जाट समाज को ही लें! जहॉ समाज के नियमानुसार सभी को सामाजिक सम्मेलनों में ही अपने बच्चों का विवाह करना आवश्यक है। इसके लिए वे सामाजिक रूप से नियम में बंधे है। अनिवार्य बाध्यता है कठोर अनुशासन के साथ यह सर्वमान्य है। कोई भी इसका उलंघन नहीं कर सकता। जब वो यह कर सकते है........हम क्यों नहीं?

                         इसी तरह समाजिक बुराईयों पर भी अंकुश लगाना अनिवार्य है। अवॉछित रीतिरिवाजों,कुरीतियों और र्दुव्यसनों में फीजूल खर्ची बंद होनी चाहिए! विवाह में भी महंगी पत्रिका छपवाना,बॉटने के लिए घर-घर जाकर चौगुनी रकम और अमूल्य समय बरर्बाद करना कहॉ की बुद्धीमानी है। पत्रिका का उद्वेश्य सूचना पहुचाना मात्र है। यह कार्य आजकल वाटसेप,एस.एम.एस.,फोन और मोबाईल से आसानी से हो सकता है। समाज में फोन पर आमंत्रण को ही प्रत्यक्ष आमंत्रण की मान्यता दी जाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। सामाजिक बंधु र्दुव्यसन और पुरानी मान्यताओं से मुक्त हो आर्थिक रूप से सम्पन्न होंगे। उन्हें स्वप्रेरणा से बचत राशी सामाजिक विकास हेतु दान करने के प्रेरित किया जा सकता है। इस कार्य के लिए स्वप्रेरित लोगों को सम्मान व प्रोत्साहन दिए जाने का कार्य भी सतत् किया जाना चाहिए। 

                    सामजिक दायित्वों के प्रति स्वयंको जागरूक होना होगा। राजपूत समाज में लोग अपने समाज की आन बान और शान के लिए मर मिटते है। वे अपने अधिकारें से ज्यादा कर्तव्य पालन को महत्व देते है। समाज के प्रत्येक कार्य में सहभागिता प्रबल दायित्व बोध के साथ अपनी अनिवार्य जिम्मेदारी समझतेे है। 

                    आज सामाजिक एकता अनिवार्य जरूरत बन गई है। लोग स्वयं को अपने ही समाज जाति का होना सिद्ध नही कर पाते। कानूनन जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए 50 साल का स्थानीय निवासी हाने का प्रमाण मॉगा जाता हैै। जिस समाज नें अभावों के कारण स्थान परिवर्तन कर अपना भरण पोषण बमुश्किल से संभव किया हो वो कैसे सिद्ध कर पाएगा। यदि कोई सामाजिक संगठन जो जनकल्याण की भावना, विस्त्रित विचारों और समर्पण के साथ सुव्यवस्थित रूप से संचालित हो रहा होता,तो इस समस्या से बचा जा सकता था। संगठन इस बात की जिम्मेदारी लेता। शासन- प्रशासन के समक्ष अपने व्यक्ति का पारिवारिक रिकार्ड प्रमाणित करता। 

                 हमारे लोगों में स्वार्थ की भावना प्रबल है। इसी स्वार्थ के चलते लोग परमार्थ के कार्य को भी स्वार्थ की दृष्टि से देखते है। समाज में जाग्रति का अभाव है,जन जागरण के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। रचनात्मक कार्यों का सतत् व प्रभावी क्रियान्वयन न किया जाना संगठनात्मक अभाव का  प्रमुख कारण है। यदि समाज के अग्रजों ने समय पर सही व सार्थक कदम उठाए होते तो आज समाज की यह र्दुदशा न होती। 

                 इस सूचना क्रॉति के युग में भी अब तक हम कई क्षेत्रों में पिछडे़ है। सामाजिक एकता लाने में कतिया गौरव पत्रिका एक महवपूर्ण भूमिका का निर्वाहन कर सकती है। निश्चित ही यह प्रयास समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए सशक्त पहल साबित होगा।

         सम्पादक मंडल को साधूवाद,व पत्रिका कतिया गौरव की सफलता के लिए शुभकामनाऐं।

 - डॉ महेन्द्र कुमार चौरे

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