बसंतोत्सव जीवन का दूसरा नाम - बसंत
बसंत जीवन का प्रतीक मात्र नही है,साक्षात् जीवन ही है, नई कोमल कलियां नहीं खिलेगी, नई कोंपले नहीं फूटेंगी नये पल नही आयेंगे,तो सृष्टि आगे कैसे चलेगी। रंगों की शोखी खिले हुये फूलों के बहाने नहीं बिखरेंगीं तो इस सृष्टि पर रंग कैसे आयेगा। जीवन का दूसरा नाम है बसंत यह उतना ही जरूरी है जैसे देख पाना महसूस कर पाना इसकी अहमियत को जानना और इसके उत्सव भाव को पहचानना। जैसे कि इस रितुरात बसंत मे कलियां मुस्कुरातीं है, कोयल गीत गाती है भंवरा गुंजन करने लगता है। आम्र के बोरों की मंद मस्त सुगंध पेड़ों पर चिड़ियाओं का चहकना, खेतो मे पीली चटख सरसों का खिलना अपने आपमें सभी का प्रकृति मन मोह लेती है। प्रकृति के अनूपम और सौंदर्यपूर्ण वातावरण में विधा की देवी मां सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी को हुआ। प्रकृति मे संगीत की छट बिखेरकर उन्होने संगीतमय वातावरण बना दिया।
ज्ञान की देवी शारदा से मेरी प्रार्थना है कि, वे हमारे अज्ञान के अंधेरे को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश भर दे। मां भारती हम सभी की वाणी व कलम मे शक्ति प्रदान करें एवं हमारी बुध्दि एवं सौदर्य से परिपर्णरखें। प्राकतिक वातावरण मे खशहाली और भरपूर संदरता के समय मे मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि, मकर सक्रांति से सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है। तो जिस प्रकार सूर्य देवता के प्रकाश में जो उष्मा और तेज है वैसे ही हम सभी महिलाओं के सोलह सिंगार मे सूर्य की किरणों का उपहार हमेशा बना रहे। ऐसा आशीर्वाद पाने के लिये हम सभी किटी पार्टी सदस्यों ने चोलकर निवास पर हल्दी कुम कुम कार्यक्रम का आयोजन किया। इसमे सभी सौभाग्यवती महिलायें एक दूसरे को हल्दी कुम -कुम लगाकर सुहाग सामग्री भेंट करती है, और अपने अपने पतियों के नाम दोहा एवं श्लोक मे बोलकर बताती है। तिल से बने व्यंजन खिलाती है। गीत संगीत की प्रतियोगिताएं भी रखी जाती है, इस प्रकार हम यह कार्यक्रम प्रतिवर्षी बड़े हर्षोल्लास से मनाते आ रहे है। हमेशा ऐसे ही बसंत का आनंद हम सब पर बरसता रहे।
इन्ही शुभकामनाओं के साथ- श्रीमती पूर्णिमा चोलकर