कुरीति उन्मूलन - एक सांझा प्रयास
1)सामाजिक खण्डता- एक ज्वलंत कुरीति जो हमारे समाज में गाँव-गाँव, शहर-शहर में गठित कार्यकारिणी के माध्यम से व्याप्त है। सभी कार्यकारिणी अपने-अपने स्तर से सामाजिक गतिविधियाँ तो कर रहीं है, किन्तु किये जा रहे कार्याे में हमारा समाज उपस्थित होकर कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है। मात्र उपस्थिति दर्ज कराना सामाजिक विकास में कभी भी मिल का पत्थर नहीं होगी। अपितु अखिल भारतीय कतिया समाज की गठित समस्त कार्यकारिणी के व्दारा एकजूट होकर तन-मन-धन, सकारात्मक सोच-विचारों के साथ-साथ जिस उद्देश्य से जिसमें समाज का हित एवं विकास के संकल्प के साथ कार्यक्रम आयोजित किया गया है, वह समाज में क्रियान्वियत हो, ऐसी सहभागिता निभाएं
2) आर्थिक असहयोग की भावना- यह विषय हमेशा कचौटता है। आर्थिक सहयोग कतिया समाज में नासूर की तरह पैर जमाए बैठा है, जो उठते-बैठते असहनीय पीड़ा देता है। आर्थिक असहयोग की भावना के कारण आज तक हम अपने समाज को अचल सम्पत्ति ष्की उपलब्धि नहीं दिला सके हैं। जिसके कारण वर्तमान परिवेश में कोई बड़ा आयोजन करना हो तो किराये के भवनों एवं किराये के गार्डनों या सरकारी जमीनों पर निर्भर रहना पड़ता है। हमारे समाज की जनसंख्या 06 अंकों में है, यदि 02 अंकों में आर्थिक सहयोग की भावना जाग्रत कर सहयोग दे सकें तो हम गाँव-गाँव,शहर में अचल सम्पत्ति खड़ी कर सकते हैं।
3)प्रचार-प्रसार तंत्र का अभाव-वर्तमानयुग कल एवं कारखानों का स्वर्णिम युग है, जिसे हम रूढ़िवादी सोच के साथ कलयुग कहते हैं। आज हम दूरसंचार के माध्यम से, प्रिंट मिडिया, इलेक्ट्रानिक्स मिडिया के माध्यम से रिश्ते-नातेदरों की ही नहीं अपित देश-विदेश की खबरंे भी सुन लेते हैं। किन्त प्रिंटमिडिया (पुस्तक संस्कृति) में हमारे कतिया समाज की कोई धरोहर नहीं है जिसे हम सहेज कर रख सकें ताकि आने वाली पीढ़ी को स्थायी रूप से सामाजिक संस्कृति, उसकी विचारधारा, उसकी परम्परा को सौंपा जा सके।“कतिया गौरव पत्रिका प्रिन्टमिडिया (पुस्तक संस्कृति) की ओर एक क्रांतिकारी कदम है। जिसे हमारा कतिया समाज भविष्य में विभिन्न आयामों, विविध विषयों के साथ-साथ नई ऊर्जा के साथ स्थापित होकर आमूल-चूल परिवर्तन स्थापित करेगा। सार्वजनिक कार्यक्रमों में मद्यपान भी एक जटिल कूरीति है। क्या हम कतिया समाज से घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा,अंध-विश्वास,बाल विवाह, विधवा विवाह पर रोक,भू्रण हत्या मृत्यु भोज आदि करीतियों के साथ-साथ सामाजिक खण्डता, आर्थिक असहयोग की भावना, पुस्तक सँस्कृति का अभाव आदि कुरीतियों से मुक्त हो सकेगें?
सुनील चौरे
अतिथि सम्पादक हरदा मो.-9826806971,