समालोचना- जब बुराईयाँ अच्छाई में बदलने लगें!
निंदक नियारे राखिए,ऑगन कुटी छबाय लगते बिन पानी साबुन बिना,निर्मल करे सुहाय।
समाजहित चिंतक संत कबीरदास के अनुसार निंदक को अपने आसपास ही रखना चाहिए। क्यों कि निंदक बिना पानी और साबुन के हम सब को निर्मल कर देते है। हमारे स्कूल के कोर्स में जब मैने यह पढ़ा था,तब मेरी नजर में निंदक बहुत ही बुरा व्यक्ति हआ करता था। जो सदैव ही दसरों में कामियॉ निकालने,दोष देखने,आपस में चुगली कर,दूसरों की बुराई कर,अच्छे लोगों को आपस में लड़ाने का काम करने वाला निकृष्ट व्यक्ति था। भला एसे व्यक्ति को अपने पास क्यों रखना? यह बात मेरी समझ में बडी देर से आई।
तब मुझे यह समझ नहीं आया था कि यह निंदक जिसे हम आलोचक कहते हैं,समाज का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण हिस्सा होगा। आज यह निंदक जाने अंजाने,भाग्यवश-र्दुभाग्यवश - दुनिया की हर बड़ी छोटी कठिनाई,बड़ी से बड़ी मुसीबत का हल चुटकीयों में कर सकते है। धरती के किसी भी कोने में किसी भी क्षेत्र में होने वाली ही हर घटना पर अपनी राय देना यह अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं। दुनिया की हर बिमारी का ईलाज इनके पास सदैव होता है। तारीफ इस बात की है,कि इन्हे सब पता होता है कि हमें,क्या,कब,कैसे,क्यूँ और कहाँ करना है? बस फर्क इतना है कि इन्हें हमेंशा अपने बारे में नहीं पता होता,कि इन्हें अपना काम कैसे करना है। ये अपने निंदा रस में सराबोर अपना घर परिवार सब कुछ भूल कर सिर्फ व्यक्ति परोपकार ( दूसरों की कमियाँ ढूंडने में ) में ही लगे रहते है। ये प्राणी सदैव ही दूसरों के जीवन में ताक झॉक करते रहते है। यह बात और है यही काम उनके लिए उन्हीं की विचारधारा से प्रेरित कोई और करते है।
ये सिर्फ ज्ञान ही नहीं देते बल्कि होने वाले फायदे नुक्सान के लिए भी बड़े अधिकार के साथ बताते है। इनका कोई नाम, पता,धर्म,जाति नहीं होती। ये किसी समाज विशेष के नहीं होते,सही मायने में ये किसी के नहीं होते। ये हमें हर जगह पर मिल जाते है।ये हमारा कोई अपना करीबी रिस्तेदार,मित्र, सहयोगी या राह में मिलने कोई अजनबी भी हो सकता है। बस इन्हें पहचानने के लिए अपनी बुद्धी को टटोलना होगा। लम्बी ओर ऊबाऊ यात्राओं के दौरान ये प्राणी बड़े ही काम का होता है। इनके जोशीले व्यक्तित्व से हमारी यात्रा थोडी आनंददायक तो होगी ही साथ में हमारे ज्ञान भंडार में कुछ बड़ोतरी भी हो जाएगी एसी ऊम्मीद करते है। कभी सामाजिक कभी हम स्वयं भी इस प्रजाति के वारिस बन जाते है।
ये महान हस्ति जब तक समाज राजनीति,सरकार या किसी ओर की आलोचना करते है तब तक हमें निर्मल आनंद की प्राप्ती लेकिन होती। लेकिन जैसे ही इनकी वकृ दृष्टी कर तीर हम पर चलता है अचानक यह हमारे दुश्मन हो जाते है। हमारी आँखों की किर किरी बन जाते है। हम निर्मल आनंद की जगह घोर अपमान महसूस करने लगते है। आपकी कोमल भावनाओं को आहत करने के बाद यही साहब आपको सम्भालेंगें,इस डॉयलॉग के साथ कि हम तो तुम्हारे अपने है,तुम्हारे भले के लिए हम कह रहे है,हम नहीं तो कौन कहेगा? यह सुनते ही हमारे मन में धधक रही क्रोध की ज्वाला और अग्नेय शाब्दिक बाणों के साथ छूटने को तैयार हमारी जुबान एकदम ठंडी पड जाती है। हमारे संस्कार तथा कथित अपनों के द्वारा सोची गई हमारी भलाई के आगे आ जाते है।
एक स्वस्थ्य समाज में हमें इस प्रजाति के अस्तित्व को नकार नहीं सकते। समाज और व्यक्तित्व को स्वच्छ बनाए रखने का स्थाई ठेका अप्रत्यक्ष रूप से इनको ही प्राप्त होता है। अतः यह हमारे सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के लिए बड़े ही उपयोगी होते है। इनके द्वारा कही गई बातें हमारे अस्तित्व को झकझोर तो देती है लेकिन बस कुछ समय के लिए। फिर हम स्वयं ही उन कमियों को स्वीकार कर सुधार लेते है। मै यह नहीं कहता कि इनके द्वारा किए गए हर कटाक्ष को हमें गंभीरता से लेना चाहिए। नहीं बिल्कुल भी जरूरी नहीं कि यह हर बार हमारा भला ही सोंचें । कई बार यह हमें हमारे मार्ग से विचलित करने,हमारे आत्म-विश्वास को हिलाने के लिए भी इन शस्त्रों का प्रयोग करते है। आखिर यह भी तो इन्सान हैं। पूर्वाग्रह,स्वार्थ,लालाच और जलन,जैसी बुराईयाँ भी समय समय पर इनको अपना शिकार बनाती है। यह हमेंशा हमारे दुश्मन नहीं होते। परंतु इन्हें दोस्त भी नहीं कहा जा सकता। ये स्वयं की नजर में ईश्वर के बाद धरती पर खूद को सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति मानते है। इनकी नजर में ये जो कहें वही सत्य है। इनका कहा ब्रह्मवाक्य है, स्वघोषित संविधान है,जिसे न मानने वालों को इनका कोपभाजन बनना पडता है।
आप इन्हें इस रूप में भी देख सकते है। जैसे हम अशुद्ध और अत्यधिक खनिज पदार्थ युक्त जल को मीठा और पीने योग्य बनाने के लिए वाटर फिल्टर का प्रयोग करते है। जो पानी में से अनुपयुक्त लवणों व गंदगी को बाहर निकालकर पीने योग्य बनाता है। ठीक उसी प्रकार यह महान आत्मा भी हमारे आचार-विचार और व्यवहार रूपी वज्र का प्रहार कर हमारी कमियॉ निकालते है। जिन्हें शायद हम स्वयं देख और समझ नहीं पाते। लेकिन सुधार कार्य के बाद हमें एक नये आत्मविस्वास के साथ खड़े होते है। इनके द्वारा कही गई बातें उन कड़वी दवाईयों के समान होती हैं जो गहराई तक जाकर लाभ दायक परिणाम देती है।
हमारे माता पिता आज भागम-भाग,पारिवारिक एवं सामाजिक जिम्मेदारियों के कारण चिंतित रहते है। जिससे वो हमारे लिए और अधिक जिम्मेदार होते हुए समय समय पर हमें नसीहत देते रहते है। जिसके कारण हम उदास ,निराश और चिढचिढे हो जाते है। लेकिन ऐसा नहीं है। वो जीवन की राह में आने वाली ठिनाईयों से हमें बचाते है। पैरों में चुभने वाले कॉटों को फूल बनाने के प्रयास में हमारी कमियों को उजागर करते हैं। अतःहमें निराश होने की बजाय खुले दिल। से उनका स्वागत करना चाहिए। ध्यान रहे श्रीमान आलोचक महोदय कृप्या सिर्फ मनोरंजन या अपमान करने के लिए किसी पर मित्थ्या आरोप न लगाएं। आपके लिए ये हंसी,ठिठोली,ताने व्यंग,मजाक सिर्फ टाईम पास के लिए हो सकते है,पर किसी स्वाभीमानी व्यक्ति के लिए वह तनाव का कारण या स्लोपाईजन का काम करता है। इससे आहत वह अरिमर्दन या आत्महंता कुछ भी बन सकता है।
महानुभाव आपकी यह परम पुनीत आदत,आपके मिथ्याभाषण,व्यंगबाण,आलोचना रूपी अमोघ अस्त्र,व्यक्ति विशेष को लक्षित कर निर्मित व कल्पित झूठ,किसी के लिए कितने घातक हो सकते है। यह आपकी सोच-समझ और कल्पना से परे की बात है। किसी सदचरित्र को दुरूचरित्र,सुयोग्य को अयोग्य,दोस्त को दुश्मन, कर्मवीर को अकर्मण्य,समाजसेवी को समाज विरोधी,मिलनसार व्यक्ति को एकान्तप्रिय,सर्वसुलभ को दुर्लभ और अच्छे खासे व्यक्ति को परिवार परिजन,स्वजन और समाज से दूर कर देते है।
महान समाज सुधारक संत कबीर की वाणी उस समय के अनुरूप सही होगी। परंतु आज के युग में जहाँ आप लोगों ने निंदक व आलोचक की परिभाषा ही बदल दी है। आधुनिक कबीर साहब को अब आपके अनुरूप यह लिखना पडता कि-
हाथ जोड़ विनती करो, रहलो कोसों दूर। जैसे देव की वैसी पूजा नित्य करो भारपूर।
न माने फिर मारीए जब तक समझ न आय, लातन के ये देवता बातें समझ न पाया।।
कभी कभी मुझे लगता है कि स्वस्थ्य और प्रदूषण मुक्त समाज के लिए आलोचकों का होना भी बहुत आवश्यक है। समाज में इनको भी उचित मान सम्मान मिलना चाहिए। सामजिक संगठनों व सरकरों द्वारा कोई वीरता चक या बडा पारितोषिक इनके नाम होना चाहिए। कितना महान व्यक्तित्व है इनका। यह अपनी इज्जत, सम्मान व जान की परवाह किए बिना ही समाज की भलाई का काम (कमियाँ ढूंडना,बुराई कारना,टॉग खीचना)करते है। ये लोगों द्वारा किए गए अच्छे से अच्छे कामों में भी यह बड़ी से बड़ी गलतियॉ ढूंड लेते है और उन्हें रस ले लेकर दुनिया के सामने गाते है। मेरी एसे आलोचकों से हाथ जोडकर निवेदन है कि आप एक नहीं हजार कमियॉ निकालिए यह आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। लेकिन उन्हें उनकी सही मंजिल तक पहुंचा दें ताकि वो अच्छाईयों में बदल जाऐं।
कोटि-कोटिप्रणाम! विनम्र अभिवादन सहित!
शुभकामनाओं के साथ!
आपका अपना ही- अनिल भवरे
मो.-9009035147