कतिया गौरव,सितम्बर-नवम्बर 2016
चिंतन के क्षण
कतिया जाति की समस्याएं और समाधान
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श्रीमती, श्रीमानसी.बी.काबजा कावजा जी |
समाज सागर है, जाति और वर्ग उसमें नदियों की तरह मिले हुए है। कतिया शब्द कातने वाले कतैया यानी बुनकर जाति के कर्म सुचक है। यह जाति विशाल -वस्त्र उद्योग के कारण देश के अनेक प्रॉन्तों में बसी हुई है। कतिया जाति को अलग -अलग नाम और गोत्रो से जाना जाता है। आजादी के बाद कतिया जाति की अन्य जातियों की तुलना में जो सामाजिक और आर्थिक प्रगति होना चाहिए थी,नहीं हो पाई। इसके अनेक कारण है -अशिक्षा,असंगठन,रूढ़ियां,फिजुल खर्ची,इसी तरह आर्थिक समाजिक और धार्मिक कई समस्याएँ रही हैं।
कुछ प्रॉन्तों में कतिया जाति सपन्न है। लेकिन होशंगाबाद जिले में उसकी स्थिति उपरोक्त करणों से दयनीय है। सन् 1978 में श्री श्रवण कुमार कतिया व अग्निभोज परिवार के प्रयासो से-हरदा,टिमरनी,चारखोड़ा,रहटगांव, हंडिया,छिपाबड़,सिराली और इटारसी के स्वजातिय बंधुओ ने कतिया जाति के संगठन को संवैधानिक और लिखित रूप से संगठित किया। इसके पूर्व लिखित,अलिखित और पंचायतों द्वारा अनेक प्रयास किए गए है।
जाति का संगठन- होशंगाबाद जिले में सबसे अधिक कतिया या बुनकर समाज के लोग है। लेकिन उनमें संगठन एवं आपसी सहयोग की सबसे बड़ी कमी है। जाति और समाज की सबसे पहली शर्त संगठन और सहयोग है। यदि संगठन नहीं है तो आजादी के इस बहुमत वाले युग में प्रगति असंभव है। आशा की जानी चाहिए की भावी पीढ़ी इस कमी को पूर्ण कर प्रगति करेंगी।
अशिक्षा- धन कमाना और शिक्षित होना-दोनो में अन्तर है। शिक्षित व्यक्ति निर्धन होकर भी विनम्र,सामाजिक प्रगतिशील और यूग के अनुसार ( समय के अनुसार स्वयं को ढालने वाले) होते है। लेकिन धनी व्यक्ति में अहं और कुछ अपवाद छोड़कर असामाजिक व्यवहार होता है। यह जाति के लिए घातक है। कतिया जाति को तन-मन-धन से शिक्षा के लिए प्रयास करना चाहिए। कोई बालक प्रतिभाशाली है तो समाज के प्रत्येक व्यक्ति को उसकी हर तरह से मदद करना चाहिए। माता पिता को भुखे रहकर भी बच्चों की पढ़ाई जारी रखनी चाहिए। उच्च शिक्षा के लिए शासन-प्रशासन की योजनाओं व छात्रावासों का लाभ लेना चाहिए।
रूढिवादी परम्पराऐं- जो जाति जितनी अविकसित होती है.उसमें उतनी ही अधिक सामाजिक और धार्मिक रूढ़िया होती है। वह जाति मकड़ी के जाल में उलझकर दम तोड़ देती है। कतिया जाति आज अनेक रूढियों की शिकार है। आज भी लोग जन्म, विवाह, मृत्यु भोज और अन्य संस्कारो पर पहले जैसा ही खर्च करते है। लोग क्या कहेंगे? माता-पिता क्यों करते आए? देवता नाराज हो जायेंगें,ये उनके तर्क और धारणा होती है।
वे कारण नही खोजना चाहते है। मृत्यु भोज,विवाह में दो तीन बार सगाई करना फिर मंडप,कुंवारी और लग्न की पत्रीका आदि देना,दहेज देना,अधिक संख्या में बराती ले जाना, बारात में महिला व बच्चों को ले जाना,समदौला करना,पान देना, भैरूआजा में पशुओं की बली देना,जादू टोना,मृतक को नर्मदा ले जाना या उसकी अस्थियाँ गंगा जी ले जाना। घाट का भोजन करना,तेरहवीं मे बेहद खार्चा करना आदि संस्कार एसी रूढिवादी परंपराएं है,जिन्हें सामाजिक बंधुओं को सुधार करके धरि-धरि त्यागना चाहिए। अनपढ़ लोग और माताएँ भावूक होती हैं,लेकिन पढ़े लिखो लोग जब इन रूढ़िवादी परंपराओं को शान शौकत मे पूर्ण करते हैं तब उनकी शिक्षा और बुद्धि पर तरस आता है। जाति का सबसे बड़ा शत्रु ये रूढ़ियाँ,परंपराएं है- उन्हें तोड़ने और त्यागने में ही हमारे समाज व कतिया जाति का उत्थान संभव है।
फिजूल खार्ची की आदत- कतिया समाज के कुछ लोग शराब, जुआ,सट्टा और आचरण हीनता के शिकार हो जाते है। वे स्वंय तो तन मन धन से तबाह होते ही हैं अपने बच्चों,परिवार और जाति को भी तबाह कर देते है। ठोकर खाना अच्छा है- लेकिन ठोकर खाकर वहीं पड़े रहना बुरा है। मुझसे कोई पाप नही बचा, लेकिन झूठी पत्तल की तरह उसे फेंक दिया। गले मे घण्टी की तरह नहीं लटकाया,इसलिये मै आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सुखी हैं। आप भी अपनी आत्मशक्ति से इन बुरी आदतों का त्याग कीजीए। साहसी,शिक्षित,विवेकशील एवं सामाजिक बनिए।
कतिया जाति का निजी भवन और प्रकाशन - जाति के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक,शैक्षेणिक और हर तरह से विकास के लिये इसका निजी भवन और त्रैमासिक या वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन होना चाहिये। इसमें जाति की समस्याएं उनके समाधान,विवाह योग्य युवाओं के परिचय सम्मेलन, आय व्यय, नियम, रिति रिवाज और समाज से संबंधित लेख आदि प्रकाशित होना चाहिये। कतिया जाति में मजदूर और किसान अधिक हैं। उन्हे निराश नही होना चाहिये। चूँकि मजदूर के सीने पर से समाज की गंगा बहती है। मजदूर की भावनाओं पर लाल किला,सांसद और सभ्यता खाड़ी है। हम ऐसे वैसे लोग नहीं है,हम समाज की अस्मिता को ढाँकने वाले लोग हैं। दूसरी जातियाँ और प्रशासन भी हमारी प्रगति चाहता है। अतः हमे विश्वास पूर्वक प्रगति की ओर बढ़ना चाहिये।
दिनांक 08.04.1990 चारखोड़ा मे कतिया समाज के वार्षिक सम्मेलन में श्री कमल अग्निभोज डिप्टी कमिश्नर ने उज्जैन में कहा था कि- प्रत्येक जाति को अपने जाति के रक्त का ऋण चुकाना चाहिये,जाति और समाज के कार्य को पूजा,नवाज की तरह पूरा करना चाहिये। शेखी मारना और रोड़े अटकाना अच्छी बात नहीं। हमें अपने अहम और स्वार्थ को लेकर समाज के बीच व देवता के मंदिर में नहीं जाना चाहिये। वहाँ केवल सेवा की भावना होनी चाहिये। कतिया जाति लिखाने और बोलने मे हमें गर्व होना चाहिये। चूंकि चंदेरी,उज्जैन,इंदौर,जबलपुर, नरसिंहपुर, बिलासपुर और होशंगाबाद जिले में इस जाति के प्रांतीय और अखिल भारतीय संगठन हैं,वे सम्मान पूर्वक जी रहे हैं।
पत्रिका के प्रकाशन मे श्री श्यामलाल ओनकर ने तन मन धन से सहयोग दिया है। इस कतिया दर्पण के प्रकाशन पर मै उन्हे हार्दिक बधाई देता है, आशा करता है कि यह पत्रिका त्रेमासिक या वार्षिक रूप से जीवित रहेगी और जाति के जीर्ण शीर्ण वस्त्र फेंककर उसे नया परिधान पहनाती रहेगी। साहित्यिक सामाजिक एवं सहृदय मित्रों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि, वे इस पत्रिका को अपना आर्थिक और सामाजिक सहयोग देकर नई दिशा प्रदान करेंगे। हार्दिक शुभकामनाओं सहित! धन्यवाद!
- सी.बी.काबजा
व्याख्याता (सेवानिवृत्त) (हिन्दी एवं समाज शास्त्र)
मध्यरेल्वे सीनियर सेकेंडरी स्कल नया यार्ड ईटारसी