स्व-संवाद - आत्म चिंतन



स्व-संवाद  -   आत्म चिंतन 

- अनिल भवरे (सम्पादक) 

आईना को करयो सामनों और कलम उठाई।                       

जो भी बात समझ म आई सॉची-सॉची बतलाई!!

अब तक तो हम कतिया होण न खूबई नाम कमायो!

                आपस मई लड़ी भिड़ी खा कतिया नाम बड़ायो!!

कोई आग कसो बढ़ी जाय,हमन ओखा रोक्यो!

मंच प नी तो गली गोया म जहाँ मिल्यो भई टोक्यो!!

                अपनी ढपली अपना राग,खूबई गाया बजाया!

                अपनी करतूतन का किस्सा,बढ़ी-चढ़ी ख सुनाया!!

सबका साम कई नी सकता हम एक्ला चिल्लाया! 

आग आग करण आला न प खूब छींटा उचकाया!!

                न करॉ नी करन देवॉ या कसम हमन खाई!

                जब भी कोई भलो काम हुयो हमन टॉग अड़ाई!! 

अपना न की छॉव नि दाबॉ,दूसरी भालई मार लात!

साथ भलई बठी ख खावॉ,पर ओसई करॉ हम घात!!

                विघठन की तो बात का हम,संगठन बनावॉ नी!

                बुरा बखात पर पॉव पड़ा हम,भला म हम इतरावॉ जी!!

जब भी कबी जीब ललचा व,भीरू आजो उपजावॉ! 

लड़ी-लड़ी खा बोटी खावॉ,लठू उठा ताकत अजमावॉ!! 

                जीत जी सेवा नी करॉ हम,मरा प गंगा हाड़ गिरावॉ!

                घर बेची ख करॉ रसोई,पीवॉ खावॉ अरू बुकलावॉ!!

बेटी जो बेटो जन्म तो,सबई पच ली खा जावॉ! 

दूर दूर का अपना पराया,दो दिन पैहल बुलावॉ!!

                दारू पीवॉ मुरगो खावॉ,गाली खूब सुनावॉ!

                कुटि-पिटि ख, लड़ी -भिड़ी खा,लौटी ख घार आवॉ!!

ब्याव हमारी बड़ी निरालो,कसी तुम खा बतलाउँ! 

बाप दादा अब तक भुगती रया,काई काई सुनाउँ!!

                 आधा लुटॉ सगाई म हम,कपड़ा खूब पिरावा! 

                छोरी आला का घार जाई ख पीवॉ धाक जमावॉ!! 

कमी जरासी भी दीख तो,हम हुड़दंग मचावॉ! 

छोटी-मोटी बातॉ पर स छोरी का बाप ख झुकावॉ!

                बेटी का बाप को हम न माना तनिक आभार!

                ब्याव ख हम रिस्तो नी जाना,हम माना व्योपार!!

छोरी लेवॉ देहज भी लेवॉ.और अकड़ दिखवॉ!

बाप समान ससुर स हम खूब पॉव पड़वावॉ!!

                दादू कय चाहे कय कबीरा.हम बात नी माना!

                बेटा की मनुहार करॉ हम,बकरा खूब चढ़ावॉ!!

जैसी करनी वैसी भरनी,सदियॉ बीती सुनता! 

खूब भाण्या,खूबई पढ़या पर,देखाता भी नी गुनता!!

                गफलत म था चुपई बठ्या था,ताकता रहया राह!

                नाव ली गया बीच भंवर म,जिनख दी पतवार!!

आखिर कब तक आईनों बदलॉ,मुंडो करिलेओ साफ!

अब तो सम्भालो कतिया बंधु,हुई गया सत्तर साल!!

                आखा-भाना की जै बोलो,कात्यानी को ध्यान करो!

                भारत भूमि सहित विश्व म,कतिया गौरवशाली बनों!!

भारत भूमि सहित विश्व म---------.!!! 

- अनिल भवरे (सम्पादक) .9009035147 


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