कूरीति-अंधश्रद्धा उन्मूलन विशेषॅक सितम्बर-नवम्बर 2016
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-ठाकुर लाल हुरमाले |
अपनी बात
समाज के प्रति -हमारा समर्पण
आज इस मंदिर में पधारे श्रृष्टि के रचियता एवं कण-कण में विराजमान इस ईश्वर के एवं उनके परिवार के चरणों में शत-शत वन्दन एवं मां रेवा के चरणों में अभिनंदन! आप सभी ईश्वर अंश भक्तगणों के चरणों में इस मानव शरीर का अभिनंदन। आज आप इस पुण्य कार्य में सम्मिलित होने आये हैं, आप कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं आपके दिल में समाज के प्रति प्रेम, त्याग, समाज विकास,समाज की उन्नती एवं ईज्जत बढे यही सोच लेकर आप आये हैं!
आप समाज के वो प्रहरी हैं,जो हर हाल में उपरोक्त बातें चाहते हैं! उपरोक्त बातों को मूर्त रूप देने के लिये आप हर कार्य करने को तैयार हैं! जैसे-देश की रक्षा करने वाला फौजी सिर्फ अपनी देश भक्ति की भावना से देश की रक्षा करता है और अंतिम समय तक अपने प्राणों के लिये बलिदान की ईच्छा रखता है और प्राण देने वाला फौजी रक्षा करके अपने को धन्य समझता है। आज भी समाज के वही फौजी हैं,जो हर हाल में उपरोक्त कार्य हेतु समर्पित हैं।
इस मानव शरीरसे अगर कठोर शब्द निकल जायें हमारे तो थोड़ा ध्यान देकर गौर करना। कभी-कभी अच्छे कार्य एवं अच्छे विचारों के साथ बुरे विचार भी आजा ते हैं। ऐसे में उन्हें दूर करना आवश्यक है। आप सभी अपने मां-बाप के अच्छे आज्ञाकारी पुत्र भी रहें हैं,पत्नी के प्रति भी आप बफादार रहे हैं। बच्चों के प्रति भी आपने पूरी मेहनत एवं त्याग के साथ उनको आगे उन्नति की ओर बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है।
यह कार्य आप सभी ने अपने दिलो जान लगाकर किया है। क्या इसलिये तो नहीं कि इनसे हमें कोई तारीफ या प्रमाण पत्र मिलेगा? तो यह समाज भी आपका अपना बड़ा परिवार है, इसकी सेवा हेतु मात्र त्याग ही आप को करना है, प्रमाण पत्र और तारीफ,नाम का भाव छोड़कर! क्योंकि सेवा ही ईश्वर है,सेवा ही समाज है,सेवा ही परिवार है,सेवा ही कर्तव्य है। यदि यह सभी का ध्येय है तो ईश्वर का आशिर्वाद एवं समाज की प्रगति भी निश्चित है और इसके पीछे आप नाम एवं आपकी इज्जत शौहरत अपने आप जुड़ी रहेगी,जैसे बीज के अंदर अंकुरण!
समाज कोई राजनीतिक मंच नहीं है,ना ही कोई मलाईदार व्यवस्था। यहां तो जो भी आता है उनके दिल में एक ही सोच है, वह है सेवा! तो जो जितनी सेवा ईमानदारी से करता है,उसका तन,मन,धन,समय उतना ही खर्च होता है तो आप सबसे बड़े समाज के जिम्मेदार सेवक है। अध्यक्ष की जगह बड़े सेवक, कोष सेवक, रक्षा सेवक सभी पदों में नाम का उपयोग क्यों न कर लें।
हमने पत्रिका के माध्यम से ऐसे 1000 नहीं 100 नहीं मात्र 9 सेवकों का नाम चाहा है। माह में 1 दिन जो तन, मन समय एवं एक दिन का एक माह में धन का त्याग कर सके। हर क्षेत्र में बगैर त्याग के प्रगति सम्भव नहीं है, जो व्यक्ति जिस चीज का त्याग करता है, वही वस्तु या चीज ईश्वर नियम से ज्यादा बढ़कर मिलती है। परंतु मनुष्य स्वभाव त्याग नहीं, पाने की इच्छा से कार्य करता है! इसलिये ईश्वर उसको उस पाने वाली चीज के पहले ही बाहर कर देता है। यह प्रकृति का सत्य है।
हमें समाज की प्रगति हेतु ऐसे 9 व्यक्तियों के नाम चाहिये इसके बाद आप देखोंगें कि यह समूह समाज की एक या दो वर्षों में कितना परिवर्तन करके प्रगति देगा। कल्पना से अधिक क्योंकि हर व्यक्ति का यह विचार होता है कि ऐसे नहीं हो,वैसा नहीं हो, ऐसा होना, वैसा होना, परंतु होगा कैसे ? यह पूछो तो कहते हैं, हमें नहीं मालूम। कहने का मतलब, न तो खुद करेंगे और ना ही आगे बढ़ कर काम करने वालों को करने देंगे! बल्कि करने वालों को हतास और करेंगें। देंगें भी नहीं और देने वालों को हतास करेंगे, तो होगा कैसे, यह नहीं मालम, इस विषय पर विशेष चर्चा करना है।
ईश्वर कहते हैं- हे मानव तू करता वही है जो तू चाहता है, परंतु होता वही है, जो मैं चाहता हूं। तू वह कर जो मैं चाहता हूं,तो होगा वही जो तू चाहता है। जिस किसी समाज ने आदर्श जीवन एवं आदर्श समाज की कल्पना की और अपने विचारों में बदलाव किया उनके उदाहरण आप और हम दे रहे हैं। इसके लिये जीवन के पांचो भागों-शारीरिक,मानसिक,आर्थिक,सामाजिक एवं आध्यात्मिक स्तर पर बदलाव आवश्यक है। इसके लिये इनको दृढ़ता पूर्वक संकल्प लेकर बदलाव करना आवश्यक है। इसके बगैर समाज में परविर्तन लाना संभव नहीं! साथ ही व्यक्तित्व और चरित्र की दौलत सहेजने एवं अपने विचारों को सही दिशा दे पाने की कला में माहिर होना होगा। वर्तमान में हमारे समाज में इसकी ही कमी है। इसलिये विचारों से हम भटक रहे हैं। हम जो चाहते हैं, उसे जल्दी अंजाम देने के लिये अपने भाव,विचार, वाणी और क्रिया में एकरूपता लाना आवश्यक है।
बस इतना ही..........!
जय आखा जी! जय भानाजी!!
-ठाकुर लाल हुरमाले
चौबे कॉलोनी हरदा मोबा. 8120616905