शिक्षकों का दायित्व
द्रोणाचार्य की नहीं जरूरत,अब हमको चाणक्य चाहिए!
समाज मे शिक्षक का स्थान सदैव एक आदर्श व्यक्ति के रूप में माना जाता है। अध्यापक/शिक्षक का जीवन त्याग,तप, और आध्यात्म का होता है। उसे इसके लिये तत्पर रहना ही होता है। यदि शिक्षक मे सद्गुण नहीं हैं, तो ऐसे शिक्षक राष्ट्र और समाज के लिये भार स्वरूप है। एक शिक्षक के आचरण से ही बालक और समाज सीखता है। समाज में शिक्षक एक आदर्श का प्रतीक होता है। यदि शिक्षक को यह स्वीकार नही है तो,उसे यह आध्यात्म का कर्म त्याग देना चाहिये। आध्यात्म नई पीढ़ी का निर्माता शिक्षा व्यवस्था की धुरी तथा विधालय का प्रांण होता है। शिक्षक विधालय की आत्मा है। बालक का चहुमुंखी विकास शिक्षक से ही संभव है। अध्यापक का राष्ट्र के प्रति बहुत बड़ा नैतिक दायित्व है। अतः शिक्षक को अपने दायित्वों की ओर पूरा ध्यान देना होगा। जो अपने अधिकार और कर्तव्य को जाने,ऐसा सर्वज्ञ शिक्षक चाहिये। द्रोणाचार्यकी नहीं जरूरत,अब हमको चाणक्य चाहिये। मै शिक्षक बंधुओं विनम्र्र अपील करती हूं कि, वे संकल्प लें कि, हम शिक्षक हैं,अतः शिक्षा की तस्वीर बदल देंगे। भारत देश के नन्हे मुन्नों की तस्वीर बदल देंगे। हम ही विश्वामित्र बनें और हम ही गरू वशिष्ठ बनें। देश मे देवालय और मदिरालय दो बड़ी गंभीर सस्याऐं है,इससे मुक्ति का मार्ग एक मात्र शिक्षालय है।
जय आखा जी! जय भाना जी!!
-श्रीमती अनिता मलाजपुरे
अध्यापक
शासकीय उ.मा. शाला, पंजरा कलॉ होशंगाबाद