कतिया गौरव जनवरी - फरवरी 2017
अतिथि कथन
समाज हित में सर्वस्व अर्पण
जिस समाज का इतिहास नहीं होता,उसका विकास नहीं होता! यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति,परिवार व समाज का अपना इतिहास होता है। समृद्धशाली लोग,देश,समाज व संगठन अपनी भावी पीढ़ी के लिए श्रेष्ठ अभिनंदनीय अनुकरणीय कार्य कर इतिहास श्रृजन स्वयं करते है। उनके कार्य उल्लेखनीय,अमिट, अविस्मरणीय व अनुकरणीय व प्रेरणाप्रद होकर भावी पीढी का मार्गदर्शन करते है। इस हेतू अग्रणी लोग अपनी सामर्थ व संसाधनों की उपलब्धता अनुसार यह कार्य इतिहासविदों से करवाते रहे है।
संसार में श्रृति,स्मृति,किवदंति,किस्से,कहानी,संस्मरण आदि के रूप में चारण,भाट,कवियों, लेखकों आदि के द्वारा प्रत्येक समाज का गैरवशाली इतिहास संजोया जाता रहा है। हमारे पूर्वज भी अपने बच्चों को सुनी सुनाई बातें विभिन्न अवसरों पर सुनाया करते रहे है। समाज में भाट परंपरा व पत्र पत्रिकाओं आदि के अनुसार भी इतिहास संजोने का काम किया जाता है।
कतिया समाज का भी अपना परिस्थितिजन्य, संकटग्रस्त,संघर्षमय ही सही पर प्रेरणाप्रद और गौरवशाली इतिहास रहा है। मध्यप्रदेश की गंजाल नदी पर आखा जी भाना जी ने अपने राजकीय सैनिकों का वेशत्याग कर सेवा कार्य में अपने समाज को प्रवृत किया। यह भी कहा जाता है कि सभी 700 बैलगाड़ीयों से उनके साथ आए समर्थकों ने अपने जनेऊ इसी नदी में तिरोहित किए थे। जो माता पिता और समाज के कर्ज से मुक्त होने व दैनिक नित्य कर्म के लिए बाधक कर्म प्रधान होने का सूचक माने जाते थे। वर्तमान परिस्थिति में उनके राजसी व श्रेष्ठ सुसंस्कार ही जीविकोपार्जन के लिए बाधक थे। किवदंती है कि इस जनेऊ विसर्जन से गंजाल नदी में कई किमी तक का पानी दूधिया दिखाई देता था। वर्षो बाद हमारे अग्रणि नेताओं ने सामजिक एकता के लिए इसी स्थान को कतिया कुम्भा व कतिया समागम नाम से बड़े सम्मेलन किए।
सबसे पहले ग्राम बाजी (संभवत आज का बारजा) जिला हरदा में 1914 में समाज के सम्मेलन का उल्लेख मिलता है। इस में समाज की में व्याप्त बुरईयों को दूर करने व सामाजिक एकता के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इन सम्मेलनों से आई सामजिक एकता नें आजादी की लड़ाई में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सामाजिक एकता के कारण ही आजादी के बाद हमारी समाज को राजनीति में प्रतिनिधित्व का अवसर मिला। इतिहास साक्षी है हमारा समाज स्वजातीय एकता व अखंडता के लिए सदैव अग्रसर रहा है। समय समय पर किए गए सम्मेलन इस बात का आधार है।
परंतु इस हेतु किए गए प्रयासों में आई निरंतर कमी,विध्नसंतोषी,स्वार्थी,सत्तालोलुप लोगों की सक्रीयता व श्रेष्ठसमाज सेवकों की निष्क्रियता ने समाज को कई टुकड़ों में विभक्त कर दिया है। इन्हीं के कारणों से आज समाज की स्थिति वैसी ही हो रही है जैसी एक कई जगह से फटी चादर,जो न देखने में सुन्दर है,न वह हमें छुपा सकती है। कुछ लागों में आज यह प्रवृत्ती ज्यादा देखने को मिलती है,‘‘झूठ बोलना,बुराई ढूंङना,टॉग खीचना’’। इस प्रवृत्ती के कारण समाजिक व संगठनात्मक कार्य अवरूद्ध हो रहे है।
समाज में परिवर्तन हो,हम सामाजिक उन्नति करें यह सभी चाहते है। पर कौन बुराई मोल ले, यह सोच कर चुप है। इस विचारधारा के लोगों ने चुप रहकर समाजहित के कार्य और विकास में बाधक बने लोगों को आश्रय दे रखा है। समाज के अच्छे लोग ऐसे लोगों के कारण घर बैठे हैं। जो कुछ कर सकते है वही लोग चुप बैठकर समाज में परिवर्तन आने का इन्तजार कर रहे है। जिस प्रकार समुद्र में दिशा सूचक यंत्र के बिना बड़े से बड़ा जहाज मंजिल तक नहीं नहीं पहुँच सकता ठीक वैसे ही उद्देश्य विहीन समाज के लोग (व्यक्तिगत उन्नति भले ही कर लें पर वे ) सामाजिक सामुहिक उन्नति नहीं कर सकते। उनका समाज अन्य समाजों की तुलना में दिशा हीन हो सिर्फ भटकत रहते है,मनचाही मंजिल तक नहीं पहुंच सकते।
समाज के सर्वांगीण विकास के लिए कतिया समाज का लिखित संविधान,व्यापक उद्देश्य और हितकारी नियम आवश्यक हैं। जब तक समाज का अपना सर्वमान्य संविधान नहीं होगा समाज का समुचित व सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता। अवश्यक्ता है समाज के सुलझे हुए अनुभवी लोगों द्वारा समाज हित में महत्वपूर्ण नियम बनाने की। साथ ही एसे प्रयासों की सराहना करने कीजो समाज हित में हों। सिर्फ इतने से भी काम नहीं चलेगा। जिस तरह बुद्धीमान लोग छेद वाले मटके में पानी भरने से पहले उसके छेद बंद करते है तभी पानी भरते है। तभी उनका पानी भरना सार्थक भी होता है। लेकिन यदि मटके में कई जगह से छेद हो गए हों तो एसे में मटका बदलनाही बुद्धीमानी है।
आज समाज की भी यही स्थिति है। स्वयंभू स्वार्थी तत्वों ने व्यक्तिगत व राजनैतिक लाभ के लिए समाज में संगठन के नाम पर विघटन पैदा कर दिया है। समय की मॉग है कि टुकडों में बंटे समाज को एकजुट किया जाए। यदि हमारे सामाजिक संगठन का प्रतीक ‘‘मटके’’ में व्यक्गित स्वार्थ,अभिमान रूपी कई छेद हो गए हैं, जिनके कारण हम एकता उन्नति व सर्वांगीण विकास स्वरूप शीतल जल का आनंद नहीं ले पा रहे हैं। तो हमें मटका बदलने की आवश्यकता है। तभी हम सामाजिक एकता से प्राप्त शीतल जल स्वरूप फल प्राप्त कर सकेगें।
आज की आवश्यक्ता है समाज के प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान रखते हुए योजनाएं बनाई जाऐं। उनका क्रियान्वयन अनुभवी सुयोग्य और दूरदृष्टा समाज हितचिंतक महानुभावों के हार्थों हों। जिनके लिए समाज हित सर्वाेपरि हो,जो समाज में एकता और उसकी अखंडता को स्थापित करनें व बनाए रखने में समर्थ हों। हमारा समाज भारत वर्ष में अन्य श्रेष्ठ समाजों के बीच मिसाल बनें। इस हेतु हम सब तन मन धन से अपना अमूल्य योगदान देकर सर्वांगीण विकास में सहभागी हों। इति शुभ!!
एड.मोहन लखोरे
अतिथि सम्पादक एवं पूर्व अध्यक्ष,
कतिया समाज सेवा संघ- हरदा
सम्पर्क नं.-9826769884