आपस म मत लड़ो - कविता

              

आपस म मत लड़ो

कतिया होंण आपस म मत लड़ो l
समाज का हक म खूब लड़ो l

आपस म लड़नो कमजोरी छे l
कोरी या सीनाजोरी छे l
छोटी छोटी बात म मत लड़ी पड़ो l
कतिया होंण आपस म...........

जोर तुम्हारा म खूब ई भरेल छे l
फिर बी तुम क्यौं खूब ई डरेल छे l
कसो बठेगा तुम्हारो धड़ो l
कतिया होंण आपस म............

पोर्या पारी न ख खूब भँणाओ l
कागत पेन हथियार बँणाओ l
आरु तुम खुद बी खूब ई पढ़ो l
कतिया होंण आपस म.............

नारी रक्षा बड़ो छे जिम्मो l
इनको खुद ही करी लेओ बिमो l
जे का ले ण खम्बा ज सा खड़ो l
कतिया होंण आपस म............
 
नेतागिरी बाह्यर को काम छे l
समाज भित्तर ए प लगाम छे l
नेतागिरी करी करी मत तुम लड़ो l
कतिया होंण आपस म.....,......

रूढ़ी होंण छे बड़ी बिमारी l
टोना टोटका छे महामारी l
ढोंग धतूरा म मत पड़ो l
कतिया होंण आपस म ............

जरूरी छे समाज म एको l 
गुर्रा फुर्री स मत देखो l
करो मत आपस म झगड़ो l
 कतिया होंण आपस म............

दारू दर्पण स दूर ई रहिजो l
सारा नशा न ख बाय बाय कईजो l
नशा म मत नाली म सपड़ो l
कतिया होंण आपस म........,.,.

मदिरा माँस मत हाथ लगाओ l
इनकी कबी राह मत जाओ। 
खाई पी ख खूब ई मत बड़बड़ो l
कतिया होंण आपस म..,.....,....

फूगी फूगी मत रहो रे भैया l आड़ा टेढ़ा मत चलो रे भैया l 
रिसाई ख खूब ई मत अकड़ो l
कतिया होंण आपस म..........,..

जसो ब ण उसो बजन उठाओ l
मण भर,किलो,छटाक उठाओ l


पण मिली जुली संग म बढ़ो l
कतिया होंण आपस म............

चिकणों आँगणों म्हारो समाज छे l 
आँगणों सब घर होंण को ताज छे l
लड़ी भीड़ी ए ख मत करो खुड़बड़ो l
कतिया होंण आपस म.............
                      

             प्रहलाद सिंह चौरे

                    हरदा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.