अधिकार एवं कर्तव्य कतिया गौरव जनवरी - फरवरी 2017

 अधिकार एवं कर्तव्य 

कतिया गौरव जनवरी - फरवरी 2017



 - ठाकुरलाल हुरमाले

समाज एक संगठन है, इसे चलाने के लिये प्रेरणा आवश्यक है। प्रेरणा किसी भी काम को करने की वजह मानी जा सकती है। यह एक ऐसी ताकत है,जो हमारी समाज की व्यवस्था एवं सोच बदल सकती है।

          इसलिए यह जो समाज के बुद्धीजीवी लोग हैं, उन्हे अपने अनुभव के आधार पर प्रेरणा देकर ही संगठित किया जा सकता है। यह हमारे अनुभवी बुजूर्गों का कर्तव्य है कि हम अपने तक ही सीमित सोंच ना रखते हुए हमारी भावी पीढ़ी के बारे में सोचें कि इन्हें संगठित कैसे किया जा सकताहै। कहा भी गया है- यदि आपको यह नहीं पता कि आपको कहां जाना है, तो दुनिया की कोई सड़क आपको वहां नहीं ले जा सकती जहां आपको जाना है। अतः आज की पीढ़ी को सद्मार्ग हमें दिखाना है उन्हें संगठित करने की प्रेरणा देना ही हमारा कर्तव्य है, प्रेरणा हमारे जीवन की अर्थात समाज की प्रेरणाशक्ति होती है, इसका जन्म सफल होने की इच्छाशक्ति से होता है। सफलता के बिना न समाज, न इंसान किसी को भी सम्मान नहीं मिलता है। प्रेरणा का सबसे बड़ा शत्रु आत्मसंतुष्टि है, और वह हममंे व हमारी समाज में पूर्णतः व्याप्त है। आत्मसंतुष्ट व्यक्ति व समाज विकास नहीं कर पाते। क्योंकि उन्हें जिंदगी की जरूरतों का अहसास ही नहीं हो पाता। इसलिये वह अपने आप में मस्त रहता है उसे किसी की कोई परवाह नहीं होती, न ही वह परवाह करता है। परंतु जब किसी प्रकार की मुसीबत आती है तो वह अपने आपको अकेला पात है और वह लाचार महसूस करता है। 

                     इसलिये हमारा कर्तव्य है कि घर-परिवार समाज को संगठित करने में भी हमारा ध्यान जाए और हमारा कर्तव्य समझकर इस बारे में समय निकालकर सोचें और संगठित करने के लिये समय और सेवा देवें। कहा भी गया है मैदान में हारा हुआ इंसान फिर से जीत सकता है, परंतु मन से हारा हुआ इंसान कभी नहीं जीत सकता। हमारी आंतरिक प्रेरणा ही हमारी आंतरिक शक्ति और नजरिया होती है और यह हमारे समाज एवं सोच पर भी असर डालती है। हम दूसरे लोगों से जैसे व्यवहार की उम्मीद करते हैं। उसे हासिल करने की कुंजी हमारा नजरिया ही है। हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें अच्छी सोच अच्छे कार्य के लिये प्रेरित करें। अतः प्रेरणा विचार के रूप में व्यक्त होती है । पैसा, मान्यता, जीवन स्तर में सुधार, हम जिन्हें प्यार करते हैं, उन सभी सामाजिक बन्धुओं का किस प्रकार से विकास होना है, यह हमारा कर्तव्य है, कि ऐसे अनुभवों से हम उन्हें समझायें जिससे उनका हित उन्हे समझ में आवे जिससे हमारे समाज का हित हो सके उसमें हमारा हित भी निहीत है। क्योंकि एक चना भाड नहीं फोड़ सक्ता। इस कहावत से जो ज्ञान मिलता है भाड फोङने हेतु अधिक चने की आवश्यक्ता होगी तो हमारा कर्तव्य है कि हम समाज रूपी चने को एकत्रित करें। इस कार्य हेतु समय एवं तन, मन, धन से सहायता करना हमारा कर्तव्य है।

                                हमारे बुजूर्ग कहानी के माध्यम से सुनाया करते थे कि संगठन में ही शक्ति होती है,और इस शक्ति को संगठन के माध्यम से कई गुना बढ़ाया जा सक्ता है। बिना संगठन के कुछ भी नहीं है। एक दिन हाथों की अंगुलियों को घमंड आ गया हर अंगुली अपने को श्रेष्ठसिद्ध करने लगी। अंगुठा कहाता है- सबसे शक्तिामान में हूँ क्योंकि मैं बहुत मोटा हूँ, इसलिये सबसे ज्यादा शक्ति मेरे अंदर है। अंगूठे की बगल वाली अंगुली कहती है मैं श्रेष्ठ व शक्तिशाली हूँ क्योंकि किसी को भी जबाब देना होता है, तो सबसे पहले मैं ही उसके तरफ उठती हूँ। बीच वाली अंगुली कहती है, नहीं सबसे श्रेष्ठ एवं शक्तिशाली मैं हूँ, क्योंकि सबसे बडी मैं हूँ। उसके बगल वाली अंगुली कहती है, नहीं सबसे श्रेष्ठ एवं शक्तिशाली मैं हूँ क्योंकि हर शुभ कार्य में तिलक लगाने का कार्य मैं करती हूँ इसलिये मैं श्रेष्ठ व शक्तिशाली हैं। सबसे छोटी अंगुली कहती है, नहीं श्रेष्ठ मैं हूँ, अगर मैं नहीं तो कोई तुम्हारी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करे। इसलिये श्रेष्ठ एवं शक्तिशाली मैं हूँ। आपसी झगड़े को सुलझाने हेतु ये एक महात्मा के पास गईं और अपनी-अपनी श्रेष्ठता के बारे में बताने लगी। सबकी बातों को सुनने के बाद महात्मा जी ने कहा एक प्लेट में रसगुल्ले लाओ और उसे सामने रखकर महात्मा जी ने कहा इसको अलग-अलग अपनी शक्ति से उठाकर मुंह में डालो, किसी भी अंगुली एवं अंगूठे से अलग-अलग यह कार्य नहीं हुआ, रसगुल्ला किसी से नहीं उठा। तब महात्मा ने कहा, शक्ति एक में नहीं अगर एक में शक्ति होती तो आप रसगुल्ले उठाकर मुंह में डाल सक्ती थी। परंतु ऐसा नहीं हो रहा है। अब आप मिलकर यह कार्य करें,आसानी से सारे रसगुल्ले मुंह में चले गये और प्लेट खाली हो गई। यह समझ हमें घर, परिवार एवं समाज में परोसना है।

                            परिवार घड़ी की सुईयों की तरह होना चाहिये जिनमें कोई छोटा, कोई बड़ा भलेही हो मगर जब 12 बजानी हो तो वे सब साथ हो जाते हैं इसी प्रकार हमारा कर्तव्य है कि कोई पूर्ण समाज संगठित होकर कार्य करें एवं विकास में सहयोग प्रदान करें कोई श्रेष्ठ नहीं है, संगठन में ही शक्ति है। अगर रसगुल्ले खाना है, तो संगठित रहना हमारा - मूल कर्म होना चाहिये यही हमारा कर्तव्य भी है। इसी प्रकार सरकार ने समानता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार तथा भिन्न-भिन्न अधिकार जनता को दिये हैं। उनकी कमी पड़ने पर या नहीं मिलने पर अधिकार के साथ जनता अपनी मांगो को रखती है। तथा उन मांगो पर सरकार गौर करती है और पूर्ण करने कि कोशिश करती है परंतु फिर भी जनता अपनी मांगों को अधिकार के साथ जब तक मांगती रहती है तब तक मांग पूर्ण नहीं हो जाती। ठीक इसी प्रकार हमारे घर परिवार में भी होता है। जिस प्रकार अपने बच्चे, अपने पिताजी, माताजी अपने कमाउ बच्चों पर, पिता पर हक समझकर बातें करते हैं और कहते हैं कि हमें अच्छे कपड़े चाहिये, गहने चाहिये, पुस्तकें चाहिये, अच्छा खाना चाहिये। भिन्न-भिन्न प्रकार की अपनी मांग, अपने बड़ों से रखते हैं, यह उनका अधिकार है और अधिकार के तहत ही मांग रखते जाते हैं और जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होती तब तक अपने अधिकार के साथ मांग को दोहराते जाते हैं। इसी प्रकार हमारी उन्नति एवं विकास के लिये हमारे परिवार, समाज, पड़ोसी सभी से अधिकार स्वरूप हम अपनी मांग या समस्या में सहयोग एवं सहारा, मार्गदर्शन अधिकार पूर्वक ले सकते हैं। इसमें अपमान या शर्मिन्दगी महसूस जैसी कोई बात नहीं समझना चाहिये यह हमारा एक दुसरे के प्रति अधिकार ही है। ऐसा नहीं करने पर हम अपना नुकसान करते हैं और पिछड़ जाते हैं और जीवन भर पछताते हैं। अतरू समय के साथ दौड़एवं विकास के लिये इन सभी से अधिकार स्वरूप सहयोग लेना हमारा कर्तव्य भी है और अधिकार भी।

 जय आखा जी ! जय भाना जी !!



 - ठाकुरलाल हुरमाले

 चौबे कॉलोनी हरदा मोबा. 8120616905 


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