इच्छानोमी और आंवला के फल का उपयोग 

इच्छानोमी और आंवला के फल का उपयोग 
 
आज इच्छानोमी है। आज के दिन हमारी गाँव की संस्कृति में आंवला के नीचे भोजन का प्रावधान है।
              पहले गाँव मे एक खेत की मेड में आंवला था तो मैं देखता कि आजके दिन  कुछ सम्पन्न घरों की महिलाएं जाती और वही हर साल भोजन पकाकर पूरे परिवार के लोग खाते भी थे।
       उनकी मान्यता थी कि ,,जो लोग  आज के दिन आमला के नीचे भोजन करते है वह मरणोपरांत  स्वर्ग में बास करते है ?,, कुछ लोग चित्र में दर्शाए गए बिधि से आज भी कही कही आंवला की पूजा   करते है।
      एक और परम्परा यह भी थी कि आज के दिन से ही आंवले का फल अचार मुरब्बा आदि बना कर खाने के उपयोग में लाया जाता था। इसके पहले खाने की सख्त मनाही थी।
       हमारे मकान के पीछे आंवला क पेड़ है जिसकी डाले छत के ऊपर तक पहुच गई है और फल भी खूब आते है । पर  बाद में आँगन का रूप देते आंवला के साथ जुड़ा हुआ वही रसोई घर बन गया है इसलिए हमारा भोजन बारहों माह आंवला के नीचे ही पकता है और सब लोग उसी की छाव में बैठकर भोजन भी करते है।
       मैं स्वर्ग नर्क पूर्व जन्म परलोक बाद को नही मानता किन्तु आज इच्छानोमी से आंवला के फल का उपयोग मुझे पूर्णतः बैज्ञानिक लगा। 
         क्योकि इसके पहले बनाये गए अचार में वह स्वाद नही रहता जो मध्य नवम्बर के बाद के आंवले में आता है। नवम्बर से उसमे पूरे औषधीय गुण आजाते है।
        पर  सब से बड़ा बैज्ञानिक पक्ष तो इस लोकोपकारी बृक्ष के वंश परिवर्धन का है । क्यो कि जब नवम्बर से इसे खाना शुरू करे गे तो दिसम्बर जनवरी में बीज परिपक्व होने तक कुछ फल अवश्य बचे गे ?  जिनके बीज जम कर कुछ पेड़ का आकार भी ले सके गे। 
       क्यो कि बाकी जीव जन्तु  प्रकृति की भोजन श्रंखला के तहद  पेट के लिए ही हर बनस्पतियों का उपयोग करते है तो उनके खाने से कुछ न कुछ अवश्य बचा रहता है।  किन्तु आज यह मनुष्य रूपी जन्तु ही बनस्पति के लिए सब से बड़ा घातक बना हुआ है।
  क्यो कि यह पेट के साथ साथ सेठ के लिए भी विदोहन करता और वह सेठ वाली ब्यापार संस्कृति पूरी तरह ह्र्दयहीनो की संस्कृति होती है। जिनके लिए सब कुछ पैसा ही होता है।
बाकी अन्य समस्याओं और उनके अनुषांगिक प्रभाव पर उनकी आँख बंद रहती है।

मान्यताएं

  • इस दिन महर्षि च्यवन ने आंवले का सेवन किया था। जिससे उन्हें फिर से यौवन मिला था। इसलिए इस दिन आंवला खाना चाहिए।
  • कार्तिक शुक्लपक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की परिक्रमा करने पर बीमारियों और पापों से छुटकारा मिलता है।
  • इस दिन भगवान विष्णु का वास आंवले में होता है। इसलिए इस पेड़ की पूजा से समृद्धि बढ़ती है और दरिद्रता नहीं आती।
  • अक्षय नवमी पर मां लक्ष्मी ने पृथ्वी लोक में भगवान विष्णु और शिवजी की पूजा आंवले के रूप में की थी और इसी पेड़ के नीचे बैठकर भोजन ग्रहण किया था।
  • मान्यता ये भी है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी। इस वजह से अक्षय नवमी पर लाखों भक्त मथुरा-वृदांवन की परिक्रमा भी करते हैं।

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