" चाय "
रुठे हुए अधिकारियों को
मैं मनाती हूँ।
शहर के हर चौराहे की गुमठी पर
मैं, मिल जाती हूँ ।
क्लर्क, राजनेता हो या व्यापारी
सबके बिगड़े काज मैं संवारती हूँ।
बड़ी बेकसी से घूंट-घूंट मुझको पीते
आंखों में आंखें डाल
बे-झिझक दिल की बात कहलवाती हूँ।
देश-विदेश से आते-जाते
मंत्रियों की सभा में
है, मेरा सबसे ऊंचा स्तर
असत्य की दीवार तोड़कर
सत्य का महल खड़ा करवाती हूँ।
जटिल से जटिल समस्याओं का
हूँ मैं सुलझता " विकल्प "
रुपया की मैं चीज़ हूँ
मगर, बड़े गर्व से लेकर मेरा नाम
लोग कहते हैं, आओ यार !
कहीं शांति से बैठकर
" चाय " पीकर बात करते हैं।
सुनील चौरे, हरदा 8770406515