विकास की परिभाषा
हम सब समाज विकास के लिए कृतसंकल्पित हैं। लेकिन विकास की परिभाषा सबके लिए अलग होने से हम उन्नति या विकास से कोसों दूर हैं। कारण अदूरदर्शिता,अकुशलता, स्पष्ट लक्ष्य एवं लक्ष्य के लिए लगन न होना, रणनीति का अभाव कुछ भी हो सकता है। लकिन यह सत्य है कि बिना स्पष्ट उद्देश्य,सुनिश्चित लक्ष्य, और उसे पाने के लिए व्यापक उचित रणनीति के सफलता में संदेह है। यदि हमारा लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ समाज उत्थान के लिए है तो हमें नित नवीन उर्जा की आवश्यकता होगी। यह उर्जा निरंतर विभिन्न कार्यक्रमों से आती है। इस दृष्टि से समाज मे कायक्रम होते रहना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ताओ को संगठन में काम करने के लिए प्रेरणा आवश्यक है। प्रेरणा एक ऐसी ताकत है जो व्यक्ति और संगठन की सोच में बदलाव लाकर व्यवस्था परिवर्तन कर सकती है। हमारा कर्तव्य है कि हम एसे लोगों को आगे लाऐं जो स्वप्रेरित हों और समाज के लिए प्रेरक का कार्य कर सके।
कतिया गौरव के माध्म से आगामी कार्यकमों कुछ इसी तरह तय किए गए है जिनसे समाज के प्रत्येक वर्ग से संवाद हो सके। समाज के प्रत्येक वर्ग के लिए समाज विकास की अवधारणा तय करना ठीक उसी प्रकार निरर्थक है जिस प्रकार नदी किनारे बैठे व्यक्ति को जबरन पार उतारना जबकि उसे उस पार जाना ही नही है। सभी को यह चिंता रहती है कि समाज को कैसे सगठित किया जाए। समाज को संगठित करने में सम्मेलन,बैठकों विचार,मंथन,शिविरों.कार्यशालाओं आदि की आज अत्यधिक आवश्यकता है।
हमें कोई गुमराह न कर सके, इतना हममें विवेक हो। कोई हम पर दबाव न डाल सके,इतना हममें आत्मबल हो। हम अपनी कृति को प्रमाणिक बाना सकें,इतना हममें आत्मविस्वास हो। हम अन्याय के विरूद्ध लड़ सकंे,इतना शौर्य हो।हम अपने आर्दशमय पथ पर अडिग होकर समुन्नत हो सकें,एसी हमारी साधना हो। पलायन नहीं संर्घष,बुझदिली नहीं साहस,अकर्मण्यता नहीं कर्मठता यही समाज विकाश की उत्तम परिभाषा है।
इन्ही शब्दों के साथ...
जय आखा जी,जय भाना जी,जय कतिया!!
-अनिल भवरे