निमाड़ी कविता - म्हारा गाँव का आम

         
       निमाड़ी कविता 
        म्हारा गाँव का आम
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आम तो म न गंज जगा का खाया
पण म ख तो म्हाराई गाँव का भाया l
 
बड़खेड़्या होंण की कंदरी
कंँईं नी ल ग दसेरी तोतापरी
आम तो गंज गिलबिलाई न खाया
पण म ख तो म्हाराई गाँव का भाया l
 
आम तो पटेल का बगीचा को खूँटवाळो
आम बी खाओ आरू मसालो बी डालो
आम स कँईं पेट नी सड़ब ड़    
 तो काई आम खाया
पण म ख तो म्हाराई गाँव का भाया l
   
आम को रस आसो मीठो
शक्कर की चासणी,गुड़ को पीठो
आम को रस बी बणाया
आरू फोलटा बी सुखाया
पण म ख तो म्हाराई गाँव का भाया l
 
गोकल म्हाराज की अथाणी
साग नी गी र जब तक नी आ व पाणी
ओ ण पैसा खूब कमाया
जे ण होर्या खूब उड़ाया
पण म ख तो म्हाराई गाँव का भायाl
 
आम तो म न गंज जगा का खाया
पण म ख तो बालागाँव का ई भाया l
पण म ख तो बालागाँव का ई भाया l
पण म ख तो बालागाँव का ई भाया l
--प्रहलाद सिंह चौरे
 
 
 
 
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